Home स्वास्थ्य जानिये डायबिटीज में स्वस्थ गर्भावस्था पाने के तरीके.

जानिये डायबिटीज में स्वस्थ गर्भावस्था पाने के तरीके.

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कई महिलाएं डायबिटीज (मधुमेह) से ग्रसित होती हैं और उन्हें इस बात कि जानकारी नहीं होती कि डायबिटीज किस तरह गर्भावस्था को प्रभावित करती है. डायबिटीज एक ऐसी बिमारी है जो शरीर में धीरे धीरे अपनी जड़ मजबूत करती है. इसको नियंत्रण में रखा जाए तो हानिकारक साइड इफ़ेक्ट से दूर रहा जा सकता है. यूं तो ऐसा भी होता है कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में डायबिटीज पैदा हो सकती है, पर यह डायबिटीज शिशु के जन्म लेने के बाद ठीक हो जाती है. पर यदि गर्भावस्था के पूर्व से ही महिला डायबिटीज से पीड़ित हो, तो इसका अलग ध्यान रखना पड़ता है. साथ ही ऐसी उम्मीद भी नहीं कि जा सकती कि शिशु के जन्म के बाद ये स्वतः ही ठीक हो जाएगी.

डायबिटीज (मधुमेह) की बीमारी असल में क्या है?

पैंक्रियास या अग्न्याशय नाम की ग्रंथि ‘इंसुलिन’ नाम का हार्मोन बनाती है। इंसुलिन हार्मोन का कार्य होता है रक्त में से शुगर या ग्लूकोस को कोशिकाओं के अंदर भेजना। कोशिकाओं के अंदर शुगर या ग्लूकोस का पाचन होता है तथा ऊर्जा पैदा होती है। इसी उर्जा से हमारे शरीर के सभी अंग अपना अपना कार्य भली-भांति करते हैं। सवाल यह उठता है कि रक्त में शुगर या ग्लूकोस आता कहां से है। इसका जवाब यह है कि हम जो भी भोजन करते हैं उसमें उपस्थित कार्बोहाइड्रेट ही शुगर या ग्लूकोस के रूप में परिवर्तित होकर रक्त में पहुंच जाते हैं। अब आप समझ गए होंगे कि यदि इंसुलिन की पर्याप्त मात्रा शरीर में ना हो तो शुगर या ग्लूकोस की मात्रा रक्त में बढ़ जाएगी। इसी स्थिति को डायबिटीज का नाम दिया जाता है।

यह आवश्यक नहीं कि इंसुलिन की कम मात्रा की वजह से ही रक्त में शुगर की मात्रा बढ़ी रहे। इन्सुलिन रेजिस्टेंस एक ऐसी अवस्था है जिसमें इंसुलिन की मात्रा पर्याप्त होती है लेकिन फिर भी शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के लिए संवेदनशील नहीं होती या कम होती हैं। इसकी वजह से इंसुलिन की मात्रा सामान्य होते हुए भी रक्त में से शुगर या ग्लूकोस कोशिकाओं के अंदर ठीक तरह नहीं जा पाता। ऐसे में भी रक्त में ग्लूकोज शुगर की मात्रा बढ़ी हुई रहती है। यदि ऐसा लंबे समय तक बना रहे तो शरीर के कई अंगों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। यदि डायबिटीज लंबे समय तक बनी रहे तो इसका हानिकारक प्रभाव शरीर के मुख्य अंगों पर पड़ता है जैसे कि हृदय, आंखें, गुर्दे, नसें, दिमाग इत्यादि।

गर्भावस्था के पूर्व से ही यदि महिला को डायबिटीज (मधुमेह) हो तो इसका प्रेगनेंसी पर क्या प्रभाव पड़ता है?

यदि डायबिटीज को प्रेगनेंसी के दौरान भली-भांति नियंत्रण नहीं किया गया तो इससे संबंधित साइड इफ़ेक्ट पैदा हो सकते हैं। डायबिटीज से प्रभावित गर्भवती महिला में निम्नलिखित समस्याओं की आशंका बढ़ जाती है।

  • अधिक ब्लड प्रेशर (रक्त-चाप) होना
  • पैदा होने वाले बच्चे में जन्म से विकृतियां होना
  • गर्भ में पल रहे बच्चे के चारों तरफ अधिक मात्रा में पानी का संचय होना
  • भ्रूण के बहुत बड़े आकार का होना: मां के शरीर से अधिक मात्रा में ग्लूकोस लेने की वजह से गर्भ में पल रहे बच्चे का आकार बहुत बड़ा हो सकता है। गर्भ में पल रहे बच्चे के बड़े आकार की वजह से जन्म देने की प्रक्रिया में कॉम्प्लिकेशन हो सकता है। इसकी वजह से सिजेरियन ऑपरेशन करने की जरूरत हो सकती है।

किस तरह डायबिटीज (मधुमेह) पैदा होने वाले बच्चे को प्रभावित कर सकती है?

जिन माताओं को डायबिटीज की बीमारी है उनके बच्चों को सांस लेने में तकलीफ, पीलिया या शरीर में ग्लूकोस की कम मात्रा जैसी बीमारियां हो सकती हैं। हालांकि यदि माताएं अपनी डायबिटीज को अच्छी तरह कंट्रोल में रखें तो इन समस्याओं की संभावना बहुत क्षीण हो जाती है। डायबिटीज से ग्रसित ज़्यादातर माताओं के बच्चे बिना किसी परेशानी के रहते हैं लेकिन कुछ बच्चों को आईसीयू में एडमिट करना पड़ सकता है।

यदि होने वाली माता को डायबिटीज (मधुमेह) है तो किस तरह प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) में इस पर कंट्रोल किया जाए?

डायबिटीज में शुगर या ग्लूकोस का स्तर कंट्रोल करने के लिए (नियंत्रित रखने के लिए) आपको अपनी दवाएं सही समय पर लेनी चाहिए। इसके साथ ही अपने खाने पीने पर ध्यान देना चाहिए तथा व्यायाम भी करना चाहिए। व्यायाम या एक्सरसाइज के बारे में आपको अपने डॉक्टर से सलाह लेने की जरूरत है। आपको बीच-बीच में अपने रक्त में शुगर की मात्रा की जांच भी करानी चाहिए। खाने में आपको चीनी या अधिक कार्बोहाइड्रेट वाली वस्तुएं लेने से परहेज करना चाहिए। अधिक फैट वाला खाना, तला भुना भोजन तथा जंक फूड से जितना दूर रहे उतना अच्छा।

डॉक्टर को कैसे पता लगता है कि डायबिटीज (मधुमेह) के मरीज का शुगर कंट्रोल कैसा है?

HBA1C या हीमोग्लोबिन a1c नाम का टेस्ट करने से यह पता लगता है कि पिछले 3-4 महीने में रक्त में शुगर कंट्रोल कैसा रहा है। यदि इस टेस्ट की मात्रा अधिक आती है इसका मतलब रक्त में शुगर की औसत मात्रा अधिक रही है। यदि इस टेस्ट की मात्रा नियंत्रित सीमा के अंदर आती है इसका अर्थ है शुगर कंट्रोल अच्छा है।

किस तरह प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) ग्लूकोस या शुगर के लेवल को प्रभावित करती है?

जिन महिलाओं में गर्भावस्था के पहले से ही डायबिटीज के समस्या होती है उनमें गर्भावस्था के दौरान शुगर या ग्लूकोस कम होने की शिकायत हो सकती है। रक्त में शुगर या ग्लूकोस कम होने को हाइपोग्लाइसीमिया कहते हैं। यह स्थिति खासतौर पर तब उत्पन्न हो सकती है जब आप कम खाना खाएं, एक समय खाना ना खाएं, दिन के सही समय पर खाना न खाएं या बहुत ज्यादा व्यायाम करें। आपको तथा आपके आसपास वालों को रक्त में शुगर कम होने के शारीरिक लक्षण पता होने चाहिए जो इस प्रकार है: अचानक अधिक भूख लगना, अधिक पसीना आना, कमजोरी महसूस होना, चक्कर आना, घबराहट होना, आंखों के आगे अंधेरा छाना, मुंह सूखना इत्यादि।

प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) पर खाने-पीने का क्या प्रभाव पड़ता है?

प्रेगनेंसी में आप जो भोजन करती हैं वो न सिर्फ आपके शरीर के लिए आवश्यक है बल्कि उसी से आप के गर्भ में पल रहे शिशु का विकास भी होता है। यह जरूरी है कि प्रेगनेंसी में पौष्टिक और बैलेंस आहार लिया जाए। खासतौर से डायबिटीज (मधुमेह) से पीड़ित महिलाओं में तो डाइट का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। यदि ठीक तरह का भोजन ना किया जाए तो शुगर की मात्रा बहुत अधिक बढ़ भी सकती है। यदि समय पर भोजन ना किया जाए या भोजन जरूरत से काफी कम किया जाए तो शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बहुत कम हो सकती है। प्रेग्नेंट महिला के शरीर में शुगर की मात्रा कम या ज्यादा होने से गर्भ में पल रहे बच्चे पर विपरीत असर पड़ता है। इसलिए यह जरूरी है की प्रेगनेंसी के दौरान पौष्टिक और बैलेंस आहार ही लिया जाए।

प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) के दौरान व्यायाम या एक्सरसाइज किस तरह डायबिटीज के नियंत्रण में मदद कर सकते हैं?

डॉक्टर द्वारा बताए गए व्यायाम करने से शरीर की ऊर्जा खर्च होती है। चूंकि शरीर में उर्जा का निर्माण शुगर या ग्लूकोस के टूटने से ही होता है इसलिए व्यायाम करने से रक्त में शुगर या ग्लूकोज की मात्रा अधिक नहीं बढ़ पाती। इससे डायबिटीज से पीड़ित गर्भवती महिलाओं में शुगर की मात्रा नियंत्रित रहती है। साथ ही व्यायाम करने के कई अन्य फायदे भी हैं जैसे वजन नियंत्रण में रहना, अच्छी नींद आना, कब्ज ना होना, ऊर्जा का स्तर बने रहना, शरीर में लचीलापन होना, तथा जोड़ों में दर्द कम होना।

क्या गर्भावस्था के दौरान भी डायबिटीज (मधुमेह) कंट्रोल करने के लिए दवाओं की जरूरत होती है?

यदि प्रेगनेंसी के पहले डायबिटीज के इलाज के लिए आपको इंसुलिन लेने की जरूरत पड़ती थी तो गर्भावस्था के दौरान भी इसकी जरूरत पड़ती है। ज्यादातर गर्भावस्था के दौरान इंसुलिन की जरूरत थोड़ी बढ़ जाती है। प्रेगनेंसी के दौरान इंसुलिन का इस्तेमाल करना पूरी तरह सुरक्षित है। इंसुलिन का इस्तेमाल करने से गर्भ में पल रहे शिशु पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ता। यदि गर्भावस्था के पहले डायबिटीज का इलाज गोलियों से हो रहा था तो आपके डॉक्टर उनकी खुराक बदल सकते हैं। डॉक्टर दवाओं में बदलाव कर सकते हैं या आपको इंसुलिन लेने की सलाह दे सकते हैं। यह जान लेना आवश्यक है कि अधिक तनाव से डायबिटीज कंट्रोल होने में मुश्किल आती है। इसलिए यह जरूरी है कि आप प्रेगनेंसी के दौरान तनाव से जितना हो सके उतना दूर रहे।

डायबिटीज (मधुमेह) किस तरह प्रसव काल और डिलीवरी को प्रभावित करती है?

डायबिटीज से पीड़ित गर्भवती महिलाओं में ज्यादातर प्रसव की तय तारीख से थोड़ा पहले दवाओं के जरिए शिशु के जन्म की प्रक्रिया को शुरू किया जाता है। ऐसा तब तो अवश्य किया जाता है जब प्रेगनेंसी में कोई कॉम्प्लिकेशन पैदा होने लगे। प्रसव काल के दौरान गर्भवती महिला के रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को बार बार चेक किया जाता है। यदि जरूरत पड़े तो इंसुलिन पंप के द्वारा इंसुलिन की दिया जाता है। यदि इंसुलिन की जरूरत लगातार पड़े तो नस में इंजेक्शन के ज़रिये भी इन्सुलिन दिया जाता है।

डायबिटीज से प्रभावित गर्भवती महिला बच्चे को जन्म देने के बाद क्या स्तनपान करा सकती है?

जी हाँ, डायबिटीज (मधुमेह) से पीड़ित नई माताओं को अपने शिशुओं को स्तनपान अवश्य कराना चाहिए। स्तनपान से ना सिर्फ बच्चे को अत्यधिक पौष्टिक आहार मिलता है बल्कि यह माता के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत अच्छा है। इसकी मदद से माताओं को शरीर में पैदा हुए अधिक वजन को कम करने में मदद मिलती है। साथ ही साथ माताओं में बच्चेदानी के बढ़े हुए आकार को भी वापस अपने सामान्य आकार में आने में मदद मिलती है। इसके साथ ही नहीं माता और उसके शिशु में एक मजबूत भावनात्मक बंधन बनता है जिसका प्रभाव माता और शिशु दोनों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।

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