जानिये 19 बातें जिनकी वजह से लोग आपकी बातों में दिलचस्पी नहीं लेते

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हर कोई चाहता है कि उसे सुना जाए। कभी-कभी लोगों का ध्यान आकर्षित करना या फिर हो रहे महफ़िल में हो रहे शोर से ऊपर उठना बहुत कठिन होता है। यह महसूस करने में बहुत बुरा लगता है, जब आप, लोगों के साथ बातचीत करते हुए, इस बात का एहसास करते हैं, कि लोग आपकी बात को सुनकर के भी अनसुना कर रहे हैं और उस बातचीत में केवल आप ही शामिल हैं सामने वाला नहीं। यह एक दर्दनाक अनुभव है. आप में से ज़्यादातर लोगों ने इस अवस्था का अनुभव कभी न कभी किया ही होगा.

यदि आप अक्सर ऐसा महसूस करते हैं कि बैठकों और बातचीत में आप ही खुद से बात कर रहे हैं तो यह संभव है कि यह आपकी समस्या है। कुछ लोग महान श्रोता होते हैं लेकिन आप शायद उन्हें सुनने का कारण ही नहीं दे पा रहे हैं। और इससे भी बदतर तब होता है जब आप उन्हें किसी तरह अपनी बातों में शामिल नहीं कर पाते हैं। ऐसी बहुत सारे तरीके होते हैं जिससे लोग बातचीत के दौरान अपने कान और दिमाग बंद कर लेते हैं। उन्हें पहचानना और इस स्थिति का उपाय करना आसान है। आज इस बारे में सोचने और विचार करने के लिए एक महान दिन है ऐसी सोच के साथ हम आगे बढ़ते हैं और आपको कुछ टिप्स देते हैं जिससे जिससे आप इस समस्या का समाधान कर सकेंगे।

Table Of Contents
  1. आप स्वभाव से ही एक शिकायतकर्त्ता हैं:
  2. आप केवल अपने ही बारे में सोचते और बोलते हैं:
  3. आप अकारण ही शोर मचाते हैं:
  4. आप जो कुछ भी कहते हो उसकी जरा सी भी जिम्मेदारी नहीं लेते:
  5. बोलना शुरू करने पर आप चुप नहीं होते:
  6. आप दूसरे के बोलने में बाधा डालते हैं:
  7. आप अधिक बुद्धिजीवी होने का प्रदर्शन करते हैं:
  8. आप जो कह रहे हैं उसके बारे में आप स्वयं ही जागरूक नहीं हैं:
  9. आप बात के विषय से भटक जाते हैं:
  10. आप जो कह रहे हैं वह निरर्थक है:
  11. आप जो कह रहे हैं वह अप्रासंगिक है:
  12. आप की बातचीत की शुरुआत हमेशा झेंप कर होती है:
  13. आप का व्यक्तित्व अधूरा सा या सतही सा है:
  14. आप जो कहते हैं, उस पर कभी खुद अमल नहीं करते:
  15. आप हमेशा ही नकारात्मक रहते हैं:
  16. आप जो भी कह रहे हैं, वह अतिसामान्य है:
  17. आप खुद कभी किसी की नहीं सुनते:

आप स्वभाव से ही एक शिकायतकर्त्ता हैं:

मैं सच में इस बात पर यकीन नहीं कर पाता कि इंसान शिकायत करने के लिए इतना उत्सुक और इस कला में इतना सक्षम क्यों होता है। शिकायतकर्ता शिकायत करके अपने वास्तविक उद्देश्य को पूरी तरह से दूसरे को समझा नहीं पाता। आप कहना कुछ और चाहते हैं पर आपका किसी को लेकर शिकायती लहज़ा कुछ और ही बयान कर रहा होता है और वास्तव में आप उन्हें खुद से दूर कर रहे होते हैं। उस समय आपको अपनी बात को दूसरे को समझाने के लिए किसी अलग दृष्टिकोण का चुनाव करना चाहिए। हर समय शिकायत करने वाले इंसान को कोई भी सुनना पसंद नहीं करता इस बात को समझना जरूरी है।

आप केवल अपने ही बारे में सोचते और बोलते हैं:

बातचीत का मतलब एक से अधिक लोगों के बीच होने वाले संवाद को कहा जाता है। आप आत्म-अवशोषित होकर, इस मूल नियम का उल्लंघन कर रहें हैं। अपने वार्तालाप को सशक्त बनाए, ताकि आप दूसरों को भावनात्मक रूप से अपने साथ अपनी बातचीत पर जोड़ सकें। अपनी स्वार्थ भरी बातें, जिनमें सिर्फ आपका ही हित है, उन्हें अपने फेसबुक पेज के लिए छोड़ दें। या अच्छा होगा यदि आप उन्हें पूरी तरह छोड़ दें।

आप अकारण ही शोर मचाते हैं:

जब आप कई बार अकारण ही लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते हैं, तो कोई भी आपके कहे गए शब्दों पर विश्वास नहीं करता। आपके द्वारा बनाया गया सारा ड्रामा लोगों को आपके पास लाने के बजाय आपसे दूर कर देता है और सबसे बुरा तो तब होता है, जब लोगों का आप पर से विश्वास ही उठ जाता है‌ जबकि उस वक्त आप सच में एक महत्वपूर्ण संदेश उन तक पहुंचाना चाहते हो, जिसे उन तक पहुंचना बहुत आवश्यक है।

आप जो कुछ भी कहते हो उसकी जरा सी भी जिम्मेदारी नहीं लेते:

लोग इस बात को बहुत अच्छे से महसूस कर लेते हैं कि कब आप अपने विचारों और सोच के प्रति उदासीन हो रहे हैं। अगर आप जो कह रहे हैं, उसके प्रति उत्साहित और ऊर्जावान महसूस नहीं कर रहे हैं, तो उस संवाद को कहने की जरूरत ही क्या? अपनी बात को उस समय कहें जब आपको स्वयं पर विश्वास हो कि आप जो कह रहे हैं वह कितना सही और तर्कसंगत है। सिर्फ बोलने के लिए कुछ कहने से आप लोगों का ध्यान अपनी तरफ ज्यादा समय के लिए आकर्षित नहीं कर सकते इस बात का ध्यान हमेशा रखना चाहिए।

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बोलना शुरू करने पर आप चुप नहीं होते:

यदि आप एक निरर्थक तरीके से सिर्फ बोलते जाते हैं, और इस बात पर जरा भी गौर नहीं करते कि, दर्शक ना केवल आपकी बातों से बोर हो रहा है बल्कि वह आपकी कहानी और व्याख्यान में ज़रा भी संलग्न नहीं हो पा रहा, तो आप गलती कर रहे हैं. ऐसे समय पर दर्शक आपकी बातों पर जरा भी गौर नहीं करते और आप सिर्फ उनके द्वारा सुने जाते हैं, समझे नहीं जा पाते। आपको अपने इस तरीके को जल्द से जल्द बदलने की जरूरत है और इसके लिए चाहे आपको अपने लंबे लंबे भाषणों को काटकर छोटा ही क्यों ना करना पड़े।

आप दूसरे के बोलने में बाधा डालते हैं:

जब लोग बोल रहे होते हैं तो उन्हें बीच में काट कर अपनी बात कहना ना केवल उन्हें उनकी बात से विचलित करना होता है बल्कि उन्हें अपमानित महसूस करवाना भी होता है। ऐसे में वे आपके नए विचारों को सुनने के बजाय इस सोच में व्यस्त होंगे कि, आप कितने असंवेदनशील है। यहां तक कि अगर आप उत्कृष्ट कोटि के विचारक भी हैं, तो भी आप यह जान ही नहीं पाएंगे कि दूसरे आपके बारे में क्या कहेंगे। अपने विचारों को एक नोट्स के रूप में लें, ना कि एक नावेल के रूप में, और दूसरों को उनकी बात खत्म करने का मौका दें। जितना जरूरी अपनी बात कहना है, उतना ही जरूरी सामने वाले की बातों को ध्यानपूर्वक सुनना भी होता है।

आप अधिक बुद्धिजीवी होने का प्रदर्शन करते हैं:

जब किसी बात की शुरुआत “वास्तव में” ऐसा कहकर होती है, तो वह सामने वाले को लिए इस प्रकार लगती है, जैसे आपने उसे किसी साउंडप्रूफ बूथ में रखा हो, जहां वह कोई भी आवाज अपनी मर्जी से ना सुन सके। किसी पर अपनी मर्जी थोपने के लिए उसके विचारों या सोच को अनसुना करना, उसकी आंतरिक आवाज को किक-स्टार्ट करने जैसा होता है। ऐसा करने से सामने वाले का दिमाग यह पता करने की कोशिश में लग जाता है, कि आप कैसे और कितने गलत हैं, साथ ही वह यह भी सोचने लगता है, कि आप इतने मतलबी कैसे हो सकते हैं। सामने वाले की विचारों को सुनना और समझना उतना ही जरूरी है, जितना आप अपनी बातों के लिए उनसे उम्मीद करते हैं। आपको अपनी योग्यता और स्थिति के अनुसार ही अपनी बातों को कहना चाहिए।

आप जो कह रहे हैं उसके बारे में आप स्वयं ही जागरूक नहीं हैं:

आजकल किसी भी बात की जानकारी जुटाना बहुत आसान हो गया है। लोग भी इस बात का पता आसानी से लगा लेते हैं, कि कब आप जो कह रहे हैं उस बात की आप अच्छी जानकारी रखते हैं या नहीं और वे, आपको इस बात का एहसास दिलाने में जरा भी हिचकिचाते नहीं हैं। कई बार लोग आपको पूरी तरह से चुप करा देते हैं‌ ऐसे समय अपना विवेक दिखाएं। इस बात को अच्छे से समझे कि, कब आप अपनी बात कहां और किस तरह से कह सकते हैं। सिर्फ सतही जानकारी के आधार पर किसी बात को कह देना सही नहीं होता। जानकारी के साथ उस बात के लिए आपका जिम्मेदार और पूर्ण रूप से उस बात के लिए जागरुक होना भी आवश्यक है।

आप बात के विषय से भटक जाते हैं:

क्या आप बातचीत के दरमियान अक्सर इस सोच में पड़ जाते हैं कि कहां था मैं? जी हां, कई बार जब आप अपनी बात सामने वाले को समझा रहे होते हैं, तो ऐसी स्थिति आ जाती है, कि आप स्वयं ही भूल जाते हैं कि आप किस बिंदु पर बात कर रहे थे। यदि आप, अपने सुनने वालों के सामने खुद एक ऐसी स्थिति पर आ जाएंगे जो मुख्य विषय से भिन्न होगी, तो संभवत लोग भी आपका अनुसरण करते हुए मुख्य विषय से भटक जाएंगे। ऐसी स्थिति ना आए इसके लिए आप जो कहना चाहते हैं, पहले उसे अच्छे से विचार कर लें। उसके बाद इसे संक्षिप्त रूप में उद्देश्य के साथ लोगों के सामने कहें, ताकि उन्हें आपकी बात समझने के लिए प्रयास ना करना पड़े और आपकी बात सीधे तरीके से उनको ना केवल सुनाई दे बल्कि समझ में भी आ जाए।

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आप जो कह रहे हैं वह निरर्थक है:

कुछ लोग किसी विशेष बात के लिए नहीं बल्कि सिर्फ बात के लिए बात करते हैं, वह मुख्यता सुना जाना चाहते हैं। यह ठीक है- यदि आप केवल अपने बारे में बात करने के लिए रुचि रखते हैं। जो लोग अपने समय को महत्व देते हैं, वह आपकी बकवास की बातों में रुचि ना रखकर आपसे दूर हो जाते हैं। खुद से पूछें क्या आप लोगों से जो कह रहे हैं, वह सचमुच महत्वपूर्ण हैं। जैसा कि गांधी जी ने स्वयं कहा “क्या यह बात कहना चुप रहने से बेहतर है? यदि नहीं तो इसे बिन कहे छोड़ दीजिए ‌”।

आप जो कह रहे हैं वह अप्रासंगिक है:

कुछ लोगों को महत्वपूर्ण वार्तालाप के बीच में किसी भी तरह की बातों को शामिल करके लोगों को परेशान करने में आनंद आता है। वे नदी की बात शुरू करते हैं, राजनीति की बातों में छलांग लगते हैं और फिर साहित्य की विवेचना शुरू कर देते हैं. ऐसे लोगों के बारे में, लोग अपनी एक अलग विचार धारणा बना लेते हैं, क्योंकि जो भी उनके मुंह से निकलता है, उसी के आधार पर सामने वाला आपकी बुद्धिमता का लगातार मूल्यांकन कर लेता है। सामने वाले को एक भी कारण ना दें, कि वह आप का मूल्यांकन निचली श्रेणी में करें। उत्पादक वार्तालाप में अपनी बातों से उसकी उत्पादकता को सदैव बढ़ाने का प्रयास करें। वार्तालाप के बीच में हो रहे तर्क उनसे प्रासंगिक होने चाहिए तभी वह वार्तालाप किसी नतीजे पर पहुंच सकती है।

आप की बातचीत की शुरुआत हमेशा झेंप कर होती है:

जब तक आप वास्तव में किसी को नाराज नहीं करते हैं तब तक माफी के साथ अपनी बातचीत की शुरुआत करना आपके खुद के अस्तित्व के लिए माफी मांगने जैसा होता है ‌। मैंने कई बार देखा है, व्यापार जगत में औरतें इस तरह की वार्तालाप, पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा करती हैं। अपनी बातों के लिए मजबूत और आश्वस्त बने। आपके शब्द आपकी उपस्थिति में मूल्य जोड़ते हैं, आपको माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं। (हालांकि कनाडियन संस्कृति में ऐसी आदत संस्कारों की वजह से होती है, इसीलिए उन्हें इस बात के लिए माफ किया जाता है।)

आप का व्यक्तित्व अधूरा सा या सतही सा है:

लोग उन लोगों की बात सुनना और समझना पसंद करते हैं, जिन पर भी भरोसा करते हैं‌ यदि आप उनको बताते हैं, कि वह कुछ ऐसा करें या ऐसा ना करें, उनके पास आपको दोबारा सुनने के का कोई भी उचित कारण नहीं होता और वे आप की बात को अनसुना कर चले जाते हैं। वे लोग जो कहते कुछ हैं और करते कुछ और, से वे या तो पाखंडी होते हैं या झूठे और दोनों ही कारणों की वजह से वे दूसरों द्वारा सुने जाने के अपने अधिकार को खो देते हैं।

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आप जो कहते हैं, उस पर कभी खुद अमल नहीं करते:

ज्यादातर लोग उन्हीं लोगों के साथ जुड़ना चाहते हैं जिन्हें अपने समय की उपयोगिता का मूल्यांकन होता है। उसका हिस्सा बनिए। वे लोग जो समय की उपयोगिता को नहीं समझते, आमतौर पर किसी भी ऐसे इंसान का ध्यान उनकी तरफ नहीं जाता जिन्हें समय की उपयोगिता का बहुत अच्छी तरह से भान होता है।

आप हमेशा ही नकारात्मक रहते हैं:

कोई भी हर समय आशावादी और हंसमुख नहीं रह सकता लेकिन यदि आप सामने वाले के समक्ष आपनी बातों में जरा भी सकारात्मकता नहीं लाएंगे, तो लोग आप में एवं आपकी बातों को सुनने में कोई रुचि जाहिर नहीं करेंगे। अपनी बात को कहने के लिए और सामने वाले को समझाने के लिए सही शब्दों का चुनाव करें, फिर चाहे आपको नकारात्मक पक्ष का साथ ही क्यों ना देना पड़े। नकारात्मक पक्ष का साथ देने का मतलब निराशावादी होना नहीं होता।

आप जो भी कह रहे हैं, वह अतिसामान्य है:

हर बार नई बात करना काफी मुश्किल होता है, इसलिए यहां-वहां की थोड़ी बहुत बातों को अपनी बातचीत के दौरान शामिल करना गलत नहीं। परंतु यदि आपकी पूरी बातचीत ही दूसरी बातों से प्रेरित है, जो कि लोगों के लिए बहुत ही सामान्य हैं, तो लोग आपको सुनना पसंद नहीं करेंगे और कुछ नया पाने की चाह में आपको छोड़ आगे बढ़ जाएंगे। कुछ नई कहानियां ढूंढें, जिनसे आप अपनी बातों और अपने विचारों को लोगों के सामने रख सकें, उनको समझा सकें। लोग हमेशा उन लोगों को ही सुनते हैं, जो आश्चर्य और ऊर्जावान तरीके से उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

आप खुद कभी किसी की नहीं सुनते:

प्रभावी वार्तालाप एक पारस्परिक प्रक्रिया है। यदि आप अपने आसपास के लोगों के साथ एक सक्रिय श्रोता नहीं है, तो वे आपकी बात सुनने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाएंगे। अच्छे श्रोता बनने को अपनी पहली प्राथमिकता बनाएं। फिर देखना, आप यह देख कर आश्चर्यचकित रह जाएंगे, कि कितने चौकस दर्शक आपको, आपकी बात सुनने और आपसे राय लेने के लिए आपको आमंत्रित करेंगे ।

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