गुरु अमरदास जी सिखों के तीसरे गुरु थे। उन्हें गुरु अंगददेव जी (सिखों के दूसरे गुरु) द्वारा 16 अप्रैल 1552 को 73 साल की उम्र में सिख धर्म का तीसरा गुरु घोषित किया गया। गुरु अमरदास जी का जन्म 1479 में अमृतसर के बसर्के नामक गाँव में हुआ था। गुरूजी के पिताजी का नाम श्री तेज भान जी व माता का नाम लछमी जी था। गुरु अमरदास जी का विवाह माता मनसा देवी के साथ हुआ और उनके घर दो पुत्र एंव दो पुत्रियाँ ने जन्म लिया। पुत्रों का नाम भाई मोहन व भाई मोहरी था और पुत्रियों का नाम बीबी दानी जी व बीबी भानी जी था। बीबी भानी जी ने बाद में भाई जेठा के साथ विवाह किया जो आगे जाकर सिखों के चौथे गुरु बनें, और तब उनका नाम हुआ – गुरु राम दास जी।
गुरु अमरदास जी सिख कैसे बनें:
ऐसा माना जाता है कि सिख बनने से पहले भाई अमरदास जी एक बहुत ही धार्मिक वैष्णव हिन्दू थे, जिन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय एक भक्तिपूर्ण हिन्दू के रूप में बिताया। एक दिन भाई अमरदास जी ने बीबी अमरो जी, जो गुरु अंगद देव जी की पुत्री थी, को गुरु नानक देव जी का एक भजन गाते हुए सुना। बीबी अमरो जी का विवाह गुरु अमरदास जी के भाई मनक चन्द जी के पुत्र के साथ हुआ, जिन्हें भाई जस्सी जी कहा जाता है। भाई अमरदास जी, भजन सुनकर इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत ही श्री गुरु अंगद देव को देखने के लिए उनके गाँव खडूर जाने का फैसला किया। यह तब हुआ जब भाई अमरदास जी 61 वर्ष के थे।
भाई अमरदास जी के छोटे भाई का नाम भाई ईशर दास था। भाई ईशर दास के पुत्र भाई गुरदास जी एक बेहतरीन कवि थे जिन्हें बाद में गुरु अर्जनदेव जी (सिखों के पांचवें गुरु) द्वारा श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के पहले संस्करण को कलमबद्ध करने के लिए चुना गया। 1635 में गुरु अंगद देव जी से मिलने पर भाई अमरदास जी इतना प्रभावित हुए की, वे एक धर्मनिष्ठ सिख बन गये। और इसी के साथ ही वे गुरूजी की सेवा में जुट गये। और लगातार सेवा देने के उदेश्य से वे खडूर साहिब में ही रहने लगे। भाई अमरदास जी सुबह जल्दी उठते थे, गुरूजी के लिए ब्यास नदी से पानी लाते थे, उनके कपडे धोते थे और ‘गुरु के लंगर’ के लिए जंगल से लकड़ी लाते थे। भाई अमरदास जी ने अपने आप को पूरी तरह गुरूजी की भक्ति में समर्पित कर दिया। और इसी भक्ति और भाव की वजह से गुरु अंगद देव जी ने मार्च 1552 में भाई अमर देव जी को सिखों के तीसरे गुरु के रूप में नियुक्त किया।
सिख धर्म का प्रचार-प्रसार और सिखों की दिनचर्या:
गुरु अमरदास जी, भाई गुरदास के हिंदी धर्मग्रंथो के गहन ज्ञान से प्रभावित थे। और सिख धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए ही गुरूजी ने भाई गुरदास जी को आगरा में नियुक्त किया। गुरु अमरदास जी ने अपनी मृत्यु से पहले सिखों के लिए एक दिनचर्या निर्धारित की। उन्होंने कहा “जो खुद को सच्चा सिख मानता है, उसे रोज सुबह उठाकर अपनी प्रार्थना करनी चाहिए, उसे प्रातः काल उठना चाहिए और पवित्र सरोवर में स्नान करना चाहिए, उसे गुरु द्वारा सलाह के अनुसार भगवान् का ध्यान करना चाहिए, पापों और बुराइयों से दूर रहना चाहिए, जैसे ही दिन चढ़ता है, उसे धर्मग्रंथो का पाठ करना चाहिए और हर गतिविधि में भगवान् का नाम दोहराना चाहिए”।
“हे नानक, मै गुरु के सिखों की धूल चाहता हूँ, जो खुद भगवान् को याद करते हैं और दूसरों को उनका स्मरण करातें हैं”
अकबर द्वारा गुरु अमरदास के दर्शन:
गुरु अमरदास जी ने, गुरु के लंगर की परम्परा को मजबूत किया और इसे आगंतुको के लिए अनिवार्य कर दिया। हर आगंतुक को संगत में जाने से पहले लंगर करना अनिवार्य था। एक बार बादशाह अकबर गुरु साहिब को देखने आये और उन्हें भी गुरूजी से मिलने से पहले लंगर करवाया गया था। इस प्रणाली से अकबर बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने ‘गुरु का लंगर’ के लिए कुछ शाही सम्पति देने की इच्छा प्रकट की, परन्तु गुरु अमरदास जी ने इसे सम्मान से अस्वीकार कर दिया। गुरु अमरदास जी ने अकबर को यमुना और गंगा पार करते समय गैर-मुसलमानों के लिए यात्री कर माफ़ करने के लिए राजी किया, और अकबर ने बेहद सम्मान पूवर्क उनकी बात को माना। गुरु अमरदास जी ने अकबर के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखे।

सामाजिक परिवर्तन और अन्य योगदान:
गुरु अमरदास जी ने सतीप्रथा के खिलाफ आवाज उठाई और विधवाओं के फिर से विवाह करने की वकालत की। उन्होंने महिलाओं से ‘पर्दा’ (घूँघट) त्यागने को कहा। उन्होंने नए तरह से जन्म, विवाह और मृत्यु समारोहों की शुरुआत की। इस प्रकार गुरूजी ने महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाया और बालिका शिशु के अधिकारों की रक्षा की। इन शिक्षाओं ने रुढ़िवादी हिन्दुओं और मुस्लिम कट्टरपंथियों से कठोर प्रतिरोध किया। उन्होंने सिख समाज के लिए तीन गुरुपर्व तय किये- दिवाली, वैसाखी और माघी।
जब हरिपुर के राजा गुरु अमरदास जी के दर्शन के लिए गये, तब गुरूजी ने राजा को सबसे पहले लंगर खाने को कहा. उस समय राजा की एक पत्नी ने घूँघट डाला हुआ था, तो गुरूजी ने उन्हें घूँघट उठाने को कहा और बोले कि जब तक वे घूँघट नहीं उठाएंगी तब तक वे उनसे मुलाकात नहीं करेंगे। गुरु अमरदास जी ने न केवल विभिन्न जाति के लोगों को समानता के लिए प्रेरित किया बल्कि उन्होंने महिलाओं की समानता के विचार को भी बढ़ावा देने का प्रयास किया।
गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाली में 84 चरणों में बाओली का निर्माण किया, और इसे सिख धर्म के इतिहास में पहली बार एक सिख तीर्थस्थल बनाया। उन्होंने गुरु नानक साहिब और गुरु अंगद देव जी के भजनों की प्रतियों को पुनः प्रस्तुत किया। उन्होंने 869 शलोक, जिनमे आनंद साहिब भी शामिल है, की रचना की, जिन्हें बाद में गुरु अर्जन जी (सिखों के पांचवे गुरु) ने सभी ग्रंथों को गुरु ग्रन्थ साहिब का हिस्सा बनाया।
भाई जेठा से मिलना और उन्हें अगले गुरु बनने की ज़िम्मेदारी देना:
जब गुरु अमरदास जी की बेटी बीबी भानी जी के विवाह का वक़्त आया तो उन्होंने लाहौर से एक जेठा नाम के मेहनती और धर्मपरायण युवा का चयन किया। जेठा लाहौर से तीर्थयात्रियों के एक जत्थे के साथ गुरु से मिलने आये थे और गुरु की शिक्षाओं से इतना मंत्रमुग्ध हो गये की उन्होंने गोइंदवाल गाँव में ही बसने का फैसला कर लिया। यहाँ उन्होंने गेंहू बेचने का काम किया और खाली समय में गुरु अमरदास जी की सेवाओं में भाग लेने लगे। गुरु अमरदास जी ने सिखों के अगले गुरु के लिए अपने किसी भी पुत्र को सही नहीं माना और उनकी जगह अपने दामाद भाई जेठा (जो गुरु रामदास के नाम से जाने गए) को अगले गुरु के रूप में नियुक्ति दी।
गुरु अमरदेव जी का दुनिया के लोगों के लिए योगदान:
- कुल 907 रहस्योदघाटन भजनों को श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में शामिल किया।
- आनंद साहिब की प्रार्थना का उपहार- जो सिखों द्वारा प्रतिदिन सुनाई जाने वाली पांच बानियों में से एक है।
- गुरूद्वारे में सभी आगुन्तको (किसी भी जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति के लोग) को गुरू के दर्शन से पहले लंगर में हिस्सा लेने के लिए कहा।
- जातिप्रथा को जड़ से मिटाने के लिए ठोस कदम उठाये।
- गुरूजी ने महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने का प्रयास किया। उन्होंने सती (पति के अंतिम संस्कार के बाद पत्नी का जलना), परदा (चेहरे को ढकने के लिए घूँघट) जैसी प्रथाओं को सख्ती से प्रतिबंधित किया
- सिख मंडल के बढ़ते आकार के प्रबंधन के लिए एक प्रशासन प्रणाली स्थापित की, जिसे मंजिस कहा जाता है।
- गुरूजी ने ब्यास नदी के तट पर गोइंदवाल शहर की स्थापना की।
गुरु अमरदास जी का देह-त्याग:
गुरु अमरदास जी का निधन 95 वर्ष की आयु में हुआ। परन्तु इससे पहले उन्होंने सिखों के चौथे गुरु के रूप में गुरु रामदास जी (भाई जेठा) को नामित किया।