क्या बच्चे का जन्म आपके जीवन में डिप्रेशन ले आया है?

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Know symptoms and treatment of postpartum depression

प्रसव के उपरांत का डिप्रेशन क्या है?

प्रसव के उपरांत के डिप्रेशन का अर्थ है शिशु को जन्म देने के बाद मानसिक अवसाद पैदा होना. ज्यादातर महिलाएं शिशु को जन्म देने के बाद कुछ दिनों तक अकेलापन या  दुख महसूस करती हैं। कई महिलाओं में यह अवस्था 3 से 5 दिन चलती है. यदि 2 सप्ताह बीत जाने के बाद भी आप मानसिक अवसाद कम नहीं  हो रहा या दिमागी खालीपन परेशां कर रहा है तो हो सकता है आपको प्रश्नोत्तर डिप्रेशन की शिकायत हो। आशा हीनता महसूस करना और मानसिक तौर पर खालीपन महसूस करना, मातृत्व का सामान्य हिस्सा नहीं है. यह एक गंभीर मानसिक बीमारी है जो आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है.

यदि आप इस डिप्रेशन में जी रही हैं तो यह आपकी रोजमर्रा की जिंदगी को भी प्रभावित करता है. आप अपने शिशु के साथ मातृत्व का जोड़ पूरी तरह महसूस नहीं कर पाती और अपने शिशु को पर्याप्त प्रेम और लाड नहीं दे पाती. कुछ माताओं को गर्भावस्था के दौरान या शिशु जन्म के उपरांत मानसिक व्यग्रता या अधिक चिंता की शिकायत भी देखी जाती है. अमूमन हर 9 नई माताओं में से एक में बच्चे के जन्म के बाद के डिप्रेशन की शिकायत देखी जाती है।

मुझे किस तरह से पता लगेगा कि क्या मैं प्रसव के उपरांत डिप्रेशन का शिकार हो चुकी हूं?

प्रेगनेंसी के बाद होने वाले कुछ सामान्य बदलाव डिप्रेशन के लक्षणों से मेल खाते हैं. इस वजह से डायग्नोसिस इतनी आसान नहीं है. जब नया शिशु घर आता है तो कई माताएं भावना में अत्यधिक ओतप्रोत हो जाती हैं और उनका व्यवहार बदल जाता है. यदि नीचे लिखे हुए लक्षणों में से कोई भी लक्षण आपने 2 हफ्ते से अधिक समय के लिए महसूस किया है तो आपको अपने डॉक्टर से मेडिकल सलाह लेनी चाहिए.

जल्दी जल्दी मूड बदलना

अधिक दुख महसूस करना

निराशा में डूबे रहना अत्यधिक रोना

अपने शिशु को शारीरिक हानि पहुंचाने के ख्याल आना

अपने आप को नुकसान पहुंचाने के ख्याल आना

अपने शिशु से किसी प्रकार का लगाव महसूस ना करना

ऐसा समझना कि यह किसी और का शिशु है

अपने शरीर में ऊर्जा का अत्यधिक अभाव महसूस करना

बहुत अधिक खाना या बहुत कम खाना

याददाश्त की समस्याएं होना

किसी भी कार्य में एकाग्रता लगाने में परेशानी होना

अत्यधिक सोना या बहुत कम सोना

फैसले लेने में परेशानी होना

अपने आप को बेकार समझना या ग्लानि में जीना

अपने दोस्तों और परिवार से मानसिक रूप से अलग हो जाना

पहले जिन गतिविधियों में आप आनंद महसूस करते थे उनमें अपना रुझान खो देना

बार बार सिर दर्द होना

मांसपेशियों में दर्द होना या पेट की समस्याएं होना जो मेडिकल इलाज से भी ठीक ना हो रही हो

कई बार माताएं अपने लक्षणों को किसी को नहीं बताती हैं क्योंकि ऐसा करने में उन्हें शर्म का अहसास होता है. उन्हें लगता है कि शिशु के जन्म के बाद उन्हें खुश होना चाहिए और यह उनकी ही गलती है कि वह दुखी हैं. उन्हें यह भी चिंता होती है कि ऐसा बताने से उन्हें बुरी माता समझा जाएगा. यह जानना जरूरी है कि गर्भावस्था के दौरान और शिशु के जन्म के बाद कोई भी माँ डिप्रेशन का शिकार हो सकती है. इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि आप एक खराब माँ है. कोई जरूरत नहीं है कि आप और आपका शिशु दोनों इस अवस्था से प्रभावित हो. आपको ऐसे में अपने परिवार, दोस्तों और डॉक्टर से इस बारे में बात करनी चाहिए और मदद की गुहार लगानी चाहिए.

Knowing signs and symptoms of postpartum depression is important

प्रसव के उपरांत डिप्रेशन किस वजह से होता है?

प्रसव के उपरांत होने वाले डिप्रेशन की वजह महिलाओं के अन्दर होने वाले हॉर्मोन में आया हुआ बदलाव है. जब कोई महिला गर्भवती होती है तो उसके शरीर में फीमेल हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन की मात्रा सबसे अधिक होती है. शिशु के जन्म के प्रथम 24 घंटे में इन दोनों हार्मोन की मात्रा अचानक से काफी गिर जाती है ताकि वह गर्भावस्था के पूर्व के लेवल पर आ सके. वैज्ञानिक मानते हैं कि हार्मोन की मात्रा में अचानक आई इस गिरावट की वजह से डिप्रेशन का जन्म होता है. शिशु को जन्म देने के बाद थाइरोइड के हार्मोन की मात्रा भी अचानक से गिरती है. थाइरोइड ग्रंथि के हार्मोन की मात्रा कम हो जाने की वजह से भी मानसिक अवसाद के लक्षण उत्पन्न होते हैं.

कुछ ख़ास भावनाएं भी प्रसव उपरांत डिप्रेशन को पैदा करती हैं और बढ़ाती हैं. कई माताएं काफी अलग अलग किस्म की परेशानी से जूझती हैं जैसे:-

लगातार नींद ना पूरी होने की वजह से थकान और अधिक चिड़चिड़ापन

शिशु के जीवन में आने की वजह से अत्याधिक भावनात्मक हो जाना

इस बात पर शक करना कि क्या वे अच्छी मां साबित हो पाएंगी

सर्वश्रेष्ठ मां बनने की होड़ में रियालिटी से दूर हट जाना

मां बनने के पहले की पहचान खो देने का दुख

जीवन में खाली समय कम हो जाने यह पूरी तरह खत्म हो जाने की पीड़ा

इस बात की चिंता कि वह शरीर से कम आकर्षक लग रही हैं

प्रसव के उपरांत होने वाली अत्यधिक थकान से ना उबर पाना

नई माँ में यह सभी भावनाएं सामान्य रूप से देखी जाती है लेकिन प्रसव उपरांत डिप्रेशन एक गंभीर मानसिक स्थिति है. अच्छी बात यह है कि इसका इलाज किया जा सकता है.

क्या कुछ महिलाओं को प्रसव उपरांत डिप्रेशन का खतरा अधिक होता है?

ऐसा सच है. नीचे लिखी स्थितियों में किसी भी महिला को प्रसव उपरांत डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है:-

यदि उन्हें पहले डिप्रेशन या बाइपोलर डिसऑर्डर रह चुका है

यदि उनके परिवार के किसी सदस्य को डिप्रेशन या बाइपोलर डिसऑर्डर रह चुका है

यदि वह गर्भावस्था के दौरान भी मानसिक अवसाद से जूझ रही थी

यदि उनकी उम्र 20 वर्ष से कम है

यदि उन्हें परिवार या मित्रों से पर्याप्त सपोर्ट नहीं है

यदि उन्हें अपने रिश्तेदारों से प्रॉब्लम है

यदि वे पैसे की समस्या से जूझ रही हैं

यदि उनके शिशु में कोई विकार है

यदि वे अपने शिशु को ठीक से स्तनपान नहीं करा सकी हैं

यदि उन्हें अधिक मात्रा में शराब का सेवन करने और ड्रग्स लेने की आदत थी

यदि उनकी यह प्रेगनेंसी उन्हें नहीं चाहिए थी

प्रसव उपरांत साइकोसिस या पागलपन क्या होता है?

कई महिलाओं में शिशु के जन्म के बाद मानसिक दिवालियापन या पागलपन देखा जाता है हालांकि इसके आसार बहुत कम है. यह लगभग हर 1000 नई बनी माताओं में से तीन से चार में देखा जाता है. सामान्यतया यह शिशु के जन्म के शुरुआती 2 सप्ताह में सबसे पहली बार देखा जाता है. यह एक मेडिकल एमरजैंसी है इसके लक्षण कुछ इस तरह होते हैं:

ऐसी आवाजों को सुनना जो वातावरण में नहीं है.

ऐसी चीजों को या द्रश्यों को देखना जो असल में आस पास नहीं है.

ज्यादातर कन्फ्यूजन में रहना

बहुत जल्दी जल्दी और बहुत अधिक मात्रा में मूड बदलना जैसे अचानक रोने लगना और उसके बाद बहुत ज्यादा हंसने लगना है

खुद को या अपने शिशु को चोट पहुंचाने की कोशिश करना

हर समय ऐसी भावना होना कि आपके आसपास के लोग तो आपको नुकसान पहुंचाना चाहते हैं

हमेशा अत्यधिक बेचैनी रहना

आसपास के हर इंसान को शक की निगाह से देखना

यदि प्रसव उपरांत डिप्रेशन के लक्षण हो तो आपको क्या करना चाहिए?

आपको अपने डॉक्टर, नर्स या मेडिकल टीम के अन्य सदस्य से तुरंत सलाह लेनी चाहिए यदि 2 हफ्ते के उपरांत भी आपका मानसिक अवसाद कम नहीं हो रहा. यदि आपका डिप्रेशन धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है

यदि डिप्रेशन के लक्षण शिशु के जन्म के 1 वर्ष के अंदर शुरू हुए और 2 हफ्ते से अधिक समय के लिए रहे

यदि आपके अपने घर में या बाहर काम करना बहुत मुश्किल साबित हो रहा है

यदि आप अपनी ठीक तरह से देखभाल नहीं कर सकते जैसे खाना, पीना, सोना, नहाना आदि

यदि आपको अपने शिशु को या खुद को चोट पहुंचाने का ख्याल बार बार आता है

यदि आप इस किस्म की समस्याओं से टूट रहे हैं तो आपको अपने किसी भी परिवारिक सदस्य मित्र को भी जल्द से जल्द इस बारे में बताना चाहिए और प्रोफेशनल मेडिकल मदद लेनी चाहिए.

प्रसव के उपरांत डिप्रेशन में डॉक्टर की राय के साथ आप और क्या कर सकती हैं?

जितना हो सके आपको आराम करना चाहिए. जब आपका शिशु सोए तो आप भी नींद ले लीजिए.

बहुत अधिक काम करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

हरेक कार्य खुद करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

बाहर घूमने के लिए कुछ समय निकालिए

अपने दोस्तों से मिलिए जुलिये और अपने जीवन साथी के साथ समय बताइए

आपके मन में जो भी भावनाएं उनके बारे में अपने परिवार के सदस्यों और मित्रों से बात करिए.

शिशु को जन्म देने के उपरांत अपने जीवन में कोई बहुत बड़ा बदलाव मत करिए. देखा जाता है कि शिशु के जन्म के बाद यदि कोई बड़ा बदलाव किया जाए तो उसकी वजह से मानसिक व्यग्रता में वृद्धि हो जाती है

इस बीमारी का इलाज क्या होता है?

प्रसव उपरांत डिप्रेशन में आमतौर पर तीन तरह के इलाज होते हैं: मनोवैज्ञानिक थेरेपी, दवाएं और इलेक्ट्रोकंवल्सिव थेरेपी (दिमागी शॉक)

मनोवैज्ञानिक थेरेपी का मतलब है कि एक साइकोलॉजिस्ट या मानसिक रोग विशेषज्ञ से बातचीत से सेशन. आप अपने व्यवहार में अमल में लाने वाले सभी बदलाव सीखते हैं जो डिप्रेशन से लड़ने में आपकी सोच बदले, आपके महसूस करने का तरीका बदले और आपके कार्य करने का तरीका बदले.

कई तरह की दवाएं उपलब्ध हैं जिनमें सबसे अधिक कॉमन है एंटी डिप्रेशन दवाएं. एंटी डिप्रेशन दवाएं मानसिक अवसाद के लक्षणों को कम करती हैं तथा उन्हें ऐसा करने में कुछ सप्ताह का समय लग जाता है. इनमें से कुछ दवाएं स्तनपान के दौरान भी आप ले सकती हैं. फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने ब्रेक्सानोलोन (brexanolone) नाम की एक दवा इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए बताई है. यह दवा 60 घंटे के दौरान नस में इंजेक्शन के जरिए दी जाती है. यह दवा सामान्य रूप से अस्पताल के अंदर एक डॉक्टर और नर्स की निगरानी नहीं दी जाती है तथा यह गर्भावस्था के दौरान या स्तनपान कराने वाली महिलाओं में सुरक्षित नहीं है. ‘एसकीटामिन’ (Esketamin) नाम की एक और दवा है जो इसके डिप्रेशन का इलाज कर सकती है और इसे नाक में स्प्रे के रूप में दिया जाता है. गर्भ में पल रहे बच्चे को एसकीटामिन के स्प्रे से हानि पहुंच सकती है इसलिए गर्भावस्था के दौरान और स्तनपान के दौरान इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए

इलेक्ट्रोकंवल्सिव थेरेपी का मतलब है सर पर विद्युत झटके देना, जिसे इलेक्ट्रिक शॉक भी कहते हैं. यह बहुत ही कम केस में बहुत ही गंभीर केस के इलाज में इस्तेमाल की जा सकती है. सामान्य मरीजों में इस तरह की कोई जरूरत नहीं पड़ती. ज्यादातर मरीजों में दवाओं के साथ साथ मानसिक विशेषज्ञ के साथ सेशन रखे जाते हैं जिससे अपने व्यवहार में बदलाव कौन-कौन से और किस तरह से लाने हैं यह बात ठीक से मालूम हो सके.

postpartum depression is a common finding after childbirth

इलाज न करा सकने में किस किस तरह है के दुष्प्रभाव पैदा हो सकते हैं?

यदि प्रसव उपरांत डिप्रेशन का इलाज समय से ना कराया जाए तो इसकी वजह से ना सिर्फ माता को बल्कि शिशु के स्वास्थ्य को भी हानि पहुंचती है. पहले बात करते हैं माता की:-

हमेशा ऊर्जा का भाव रह सकता है

बहुत जल्दी जल्दी मूड बदल सकता है

बच्चे की जरूरतों पर और खुद की जरूरतों पर ध्यान रख पाने में मुश्किल हो सकती है

आत्महत्या करने के विचार आ सकते हैं

शिशु को शारीरिक हानि पहुंचाने के विचार आ सकते हैं

एक बुरी मां होने का विचार डिप्रेशन को और भी गंभीर बना देता है

वैज्ञानिक जांचों से पता लगा है कि प्रसव उपरांत डिप्रेशन माता के साथ-साथ शिशु को भी पूरे बचपन प्रभावित कर सकता है. उसकी वजह से शिशु में नीचे दिए हुए बदलाव आ सकते हैं:-

भाषा ज्ञान में या वाणी के विकास में देरी होना

लर्निंग डिसेबिलिटी होना जिसका अर्थ है सीखने की क्षमता में विलंब होना

माता और शिशु के भावनात्मक संबंध का मजबूत ना होना

शिशु में व्यवहार की समस्याएं होना

शिशु का अधिक रोना या अधिक चिड़चिड़ा होना

शिशु की लंबाई ठीक से ना पढ़ पाना और अधिक मोटापे का खतरा होना

जब शिशु स्कूल जाना शुरू करें तो एडजस्टमेंट में दिक्कत होना

शिशु के द्वारा विभिन्न प्रकार के सामाजिक परिवेश में खुद को एडजस्ट करने में समस्या होना

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