क्या आपका बच्चा आपके द्वारा पुकारे जाने पर या आपके चेहरे के हावभाव को देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है? क्या वह आपकी आवाज सुनने के बावजूद न तो पलटता है न खुश होता है और न ही कुछ जवाब देता है? क्या वह दूसरों से घुलने मिलने में संकोच करता है? क्या वह हमेशा ही आतुर रहता है और चुप चाप नहीं बैठता? क्या दूसरे बच्चों की तुलना में आपका बच्चा ज्यादा चुप रहता है? अगर आपके बच्चे में भी ये लक्षण हैं तो हो सकता है कि वह ऑटिज्म से पीड़ित हो. भारत में 20 लाख से अधिक लोगों में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम की बीमारी पाई जाती है. यह भी मन जाता है कि असली आंकड़े और भी ज्यादा होंगे क्योंकि बहुत से परिवार डॉक्टर की सलाह नहीं लेते और उनकी पहचान नहीं हो पाती.
बच्चे के तीन साल के होने के पहले यदि ठीक तौर से परीक्षण किया जाये तो ऑटिज्म के लक्षण देखे जा सकते हैं. कुछ बच्चे डेढ़ से दो साल की उम्र तक सामान्य रूप से विकसित होते हैं और उसके बाद उनमें ऑटिज्म के लक्षण पैदा हो जाते हैं.
ऑटिज्म में देखे जाने वाले कुछ मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:
एक ही तरह की गति वाली हरकतें करना, जैसे बार बार हाथों को झटका देना, एक ही तरह से उँगलियों को हिलाना इत्यादि.
-किसी से भी नज़रें नहीं मिलाना
-किसी के भी शारीरिक स्पर्श से बचना
-कोई भी अर्थ वाला शब्द या वाक्य न बोलना (या बहुत देर से और अविकसित तरीके से बोलना)
-शब्द सुन कर बार बार दोहराना (या बिना सुने भी दोहराना)
-शोर शराबे से घबराना या कान में ऊँगली डालना या दूर भागना
-लोगों से दूर रहना
-अपने में ही खुश रहना
-एक जगह आराम से नहीं बैठना
-छोटे छोटे बदलाव (दिनचर्या या लोगों का व्यवहार) से परेशान हो जाना
-अपनी बात दुसरे को न समझा पाने से परेशान हो कर रोना
-अधिक भीडभाड़ की जगह (बाज़ार, मॉल, स्टेशन, सिनेमाहाल इत्यादि) में घबरा जाना,परेशान हो जाना

किसी किसी केस में ऑटिज्म के लक्षण बहुत जल्दी भी देखे जा सकते हैं – जैसे एक साल की उम्र पर या उसके भी थोडा सा पहले. देखा गया है कि छोटे बच्चे बहुत सामाजिक होते हैं. ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों में सामाजिक संवेदना कम होती है. इस उम्र के बच्चों में यदि आप ये लक्षण देखें तो आपको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए:
एक वर्ष की उम्र होने पर ऑटिज्म के लक्षण:
-माँ (या अन्य परिवारजन) के बुलाने पर भी प्रतिक्रिया न देना
-अपना नाम पुकारे जाने पर भी न मुड़ना, या कोई प्रतिक्रिया न देना
-लोगों को उनकी आँखों में आँखें डाल कर न देखना
-एक वर्ष की उम्र तक इशारा करने पर चीज़ों की पहचान न करना
-आस पास के वातावरण में लोगों द्वारा प्रोत्साहित किये जाने पर भी न मुस्कुराना (और सकारात्मक प्रतिक्रिया न देना)
दो-तीन वर्ष की उम्र होने पर ऑटिज्म के लक्षण:
-डेढ़ वर्ष (18 महीने) की उम्र पर भी एक भी शब्द न बोलना
-दो वर्ष की उम्र तक कोई भी दो शब्द एक साथ न बोलना
-भाषा ज्ञान में गंभीर रुकावट दिखना
-आसपास लोगों द्वारा वस्तुओं की तरफ इंगित किये जाने पर भी कोई रूचि न दिखाना
-किसी के साथ खेलकूद का हिस्सा न बनना
ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों में कई किस्म के शारीरिक लक्षण भी देखे जा सकते हैं, जैसे:
समय पर नींद नहीं आना
खाना पचाने की दिक्कत
कब्ज़ रहना
कभी भी हँसना शुरू कर देना
पढाई में दिल नहीं लगना और पढाई समझ में न आना
हाथों की पकड़ मज़बूत नहीं होना
दौड़ने में तकलीफ होना
मांसपेशियों में ढीलापन होना
मिर्गी के दौरे पड़ना
गुप्तांग से छेड़छाड़ करना
बहुत अधिक गुस्सा आना
गुस्सा आने पर काफी उग्र व्यवहार करना, जैसे खुद को या दुसरे को चोट पहुँचाना
सामान इधर उधर फेंकना
अपने आप टॉयलेट हो पाने में असमर्थ होना
अपने आप कमीज़ के बटन न बंद कर पाना, खुद से तैयार न हो पाना
कोई भी कार्य जिसमें एकाग्रता लगती है, उसमें पीछे रहना

समय पर ऑटिज्म को पहचानने के तरीके:
ज़्यादातर मामलों में देखा जाता है कि जब बच्चा स्कूल जाना शुरू करता है तब उसमें ऑटिज्म की पहचान होती है. इस देरी से वो कई प्रकार के इलाज से वंचित रह जाते हैं जो तब प्रभावशाली होते हैं जब जल्दी से जल्दी शुरू कर दिए जाएँ.
डॉक्टर्स ये सलाह देते हैं कि यदि बच्चा अपनी उम्र के हिसाब से मुख्य मुख्य काम भी नहीं कर पाता तो नौ महीने की उम्र पे डॉक्टर को दिखाना चाहिए. यदि बच्चे का व्यवहार आपको अलग लग रहा है – वो गुमसुम लगता है या समाज से अलग थलग लग रहा है, बुलाने पर ठीक से प्रतिक्रिया नहीं दे रहा, हमेशा अधिक उर्जा में रहता है, भाषा विकास क्षीण है या बहुत अधिक जिद्दी है तो आपको 18 महीने की उम्र में और 24 महीने की उम्र पर भी डॉक्टर से परामर्श ले लेना चाहिए. जिन बच्चों के परिवार में किसी को ऑटिज्म रह चूका है उनमें इस बीमारी के होने की सम्भावना अधिक रहती है.
अब आइये जानते हैं वो बातें जो ऑटिज्म के निदान (diagnosis) में ज़रूरी होती हैं.
बात-चीत और भाषा का इस्तेमाल
चेकअप के दौरान डॉक्टर्स ये जांच करते हैं कि शिशु आवाज़ लगाने पर, मुस्कुराने पर, बुलाये जाने परकिसी तरह से प्रतिक्रिया करता है. क्या वो बात मानता है या नहीं. क्या बच्चे से बात कर पाना मुश्किल है? क्या बच्चे को बात मनवाने के लिए कई बार बोलना पड़ता है? क्या बच्चा बोलने की कोशिश करने पर सिर्फ मतलब-रहित आवाजें ही निकाल पाता है?
सामाजिक गतिविधियों का अभाव
ऑटिज्म की ख़ास पहचान है कि प्रभावित बच्चा लोगों की आँखों में नहीं देखना चाहेगा. चाहे वो उसके माता, पिता, भाई, बहन ही क्यों न हो. ये किसी भी वास्तु पर अपनी पूरी एकाग्रता लगा देंगे पर अपने आसपास वालों को दरकिनार करते रहेंगे. वो अपनी बात बताने के लिए शारीरिक हाव भाव बदलने का प्रयास नहीं करते. ये अकेले में रहना चाहते हैं. कई बार इन्हें तेज़ रौशनी और शोर से भी कुंठा होती है. और ये स्वभाव से मिलनसार नहीं होते (देखा गया है कि ये सबका ध्यान खींचना चाहते हैं पर सही तरह से इस बात को जाहिर नहीं कर पाते)
जांच के तरीके
बच्चे को ठीक से सुनाई देता है या नहीं, इसके लिए आडिओमेट्री (audiometry) का टेस्ट किया जाता है. सर के अन्दर कोई संरचनात्मक विकार तो नहीं है , यह जानने के लिए सर का एम-आर-आई. (MRI) स्कैन किया जाता है. कैरिओटाइपिंग (क्रोमोसोम की जांच) भी की जाती है ताकि किसी जेनेटिक बीमारी का पता लगाया जा सके. साथ ही डॉक्टर द्वारा नर्वस सिस्टम का एवं पूरे शरीर का एग्जामिनेशन किया जाता है ताकि हर बारीक बात की जांच की जा सके. टॉक्सिक पदार्थों की जांच की जाती है, हैवी मेटल की उपस्थिति और मात्रा की जांच की जाती है और शरीर में विटामिन तथा ज़रूरी पोषक तत्वों (खनिज, लवण) की भी जांच की जाती है. ऑटिज्म में इन सभी की रिपोर्ट ठीक आती है.