क्या आप चाय के साथ प्लास्टिक के अरबों टुकड़े भी पी रहे हैं?

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plastic tea bag

एक नई वैज्ञानिक जांच में पता लगा है कि प्लास्टिक से बने टी-बैग का उपयोग करने से आपकी सेहत को खतरा हो सकता है. कई टी-बैग की कम्पनियां कागज़ के टी-बैग की बजाय प्लास्टिक के टी-बैग बनाती हैं. कनाडा में हुई वैज्ञानिक जांच से पता चला है कि प्लास्टिक से बने टी-बैग का उपयोग करने से अरबों-खरबों की मात्रा में प्लास्टिक के अति-सूक्ष्म टुकड़े आपके शरीर में जा सकते हैं.

क्या है इन प्लास्टिक के टुकड़ों का आकार?

ऐसा देखा गया है कि चाय उबलने के तापमान पर (लगभग 205 F या लगभग 95 C) एक प्लास्टिक टी-बैग से करीब-करीब 11.6 अरब माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े (मीटर का लाखवां भाग) और लगभग 3.1 अरब नैनोप्लास्टिक (मीटर का दस करोड़वां भाग) के टुकड़े आपके शरीर के अन्दर जाते हैं. यह जांच नताली तुफेंक्जी (मोंट्रियल में मैक्गिल विश्वविद्यालय में केमिकल इंजीनियरिंग की प्रोफेसर) की अध्यक्षता में रिसर्च टीम द्वारा की गयी.

इस रिसर्च के पहले की जानकारी के हिसाब से यह अनुमान लगाया जाता है कि प्रतिवर्ष हम करीब 74,000 माइक्रोप्लास्टिक के कण खा-पी लेते हैं. इस रिसर्च से ये पता लगता है कि एक कप प्लास्टिक टी-बैग से बनी चाय पीने से हम करीब 2 लाख गुना अधिक कण एक साथ पी लेते हैं.

विश्व भर में प्लास्टिक के उत्पादों का इतना अधिक इस्तेमाल किया जाता है कि प्लास्टिक के छोटे छोटे टुकड़े समुद्री आहार (मछलियाँ), नल के पानी, यहाँ तक कि इंसानी मल में भी पाए जाते हैं. पिछले कई वर्षों में प्लास्टिक के अति-सूक्ष्म कणों ने न सिर्फ वातावरण को दूषित किया है बल्कि शरीर को भी कई तरह से प्रभावित किया है. कुछ वैज्ञानिक ये मानते हैं कि ठीक तरह से नहीं कहा जा सकता कि क्या प्लास्टिक से शरीर को हानि होती है. वो मानते हैं कि अभी इतना डाटा (जानकारी) नहीं है कि प्लास्टिक के उपयोग से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में सब कुछ पता लग सके.

यह जानना जरूरी है कि इन प्लास्टिक के छोटे छोटे कणों में ऐसे केमिकल भी होते हैं जो शरीर की सेहत खराब करने के लिए जाने जाते हैं, जैसे हॉर्मोन खराब करने वाले केमिकल और कैंसर पैदा करने वाले तत्व. कनाडा में हुई इस जांच में पाया गया कि चाय की गर्मी से प्लास्टिक टी-बैग की प्लास्टिक छोटे छोटे टुकड़ों में टूट जाती है. ये टुकड़े बाल की मोटाई से भी हज़ारों गुना छोटे होते हैं. इसका अर्थ ये है कि न तो आप इन्हें देख सकते हैं, न मुंह के अन्दर महसूस कर सकते हैं, और ना इनका कोई स्वाद होता है.

जांच का आगे का हिस्सा

आगे जांच करते हुए जांचकर्ताओं ने निम्नलिखित कार्य किये:

  • पहले इन प्लास्टिक टी-बैग के अन्दर से चाय पत्ती हटा दी.
  • फिर उन्होंने इन खाली टी-बैग को पानी से धुल दिया.
  • फिर इन टी-बैग को गरम पानी के अन्दर रख दिया.
  • फिर इन्हें इलेक्ट्रान-माइक्रोस्कोप के ज़रिये देखा.

रिसर्च टीम ने यह पाया कि औसतन एक टी-बैग से लगभग १२ अरब माइक्रोप्लास्टिक कण निकल आर पानी में चले गए. यह भी देखा गया कि लगभग 3 अरब नैनोप्लास्टिक कण निकल कर पानी में मिल गए. खाने और पीने की अन्य वस्तुओं की तुलना में ये संख्या हज़ारों गुना अधिक है. बहुत अधिक छोटा आकार होने की वजह से संभव है कि ये कण शरीर की कोशिकाओं के अन्दर जा कर महत्वपूर्ण क्रियाओं में बदलाव पैदा करे जिससे बीमारियाँ हों.

एक अन्य रिसर्च प्रयोग में इन प्लास्टिक के कणों की अलग अलग मात्रा बहुत छोटे जानवरों को खाने के लिए दी गयी, जैसे पानी में रहने वाली मक्खी. फिर ये देखा गया कि इन जीवों के शरीर और व्यवहार में कई किस्म के बदलाव हो गए. इन सभी नतीजों को वैज्ञानिक जर्नल Environmental Science & Technology में प्रस्तुत किया गया ताकि पूरे विश्व को यह पता लग सके. हालांकि रिसर्च टीम का या मानना है कि इन प्लास्टिक के कणों के दुष्प्रभाव जानने के लिए अभी और रिसर्च की आवश्यकता है.

हम सभी को इस बात को समझना चाहिए कि जब तक निष्कर्ष पूरा न हो जाए हम कागज़ के टी-बैग का इस्तेमाल करें. खुली (लूज़) ग्रीन टी या सामान्य टी का भी उपयोग कर सकते हैं. वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (WHO) यह कहता है कि अभी इस बात के पुख्ता सबूत नहीं है कि इस प्लास्टिक का सेवन शारीर के लिए हानिकारक है. पर जिस प्लास्टिक का सेवन एक जंतु के लिए हानिकारक हो सकता है, वह मनुष्य के लिए भी हानिकारक को सकता है. इससे बचना ही सबसे बड़ी रोकथाम है. माइक्रोवेव इस्तेमाल करने वालों को ये पता होना ज़रूरी है कि 40 C तक ही गरम करने पर प्लास्टिक अच्छी मात्रा में टूट कर खाने में मिल सकता है. चाहे फ़ूड-ग्रेड प्लास्टिक का इस्तेमाल करें तब भी. इसलिए अब जब भी आप टी-बैग खरीदें, ये पक्का कर लें कि कहीं टी-बैग प्लास्टिक का बना तो नहीं है. यदि है, तो उस से बाय बाय कर दें. सेहत से समझौता न कल सही था न आज सही है.

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