पार्किंसन रोग से जुड़ी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक जानकारियाँ एवं प्रश्नों के उत्तर

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Table Of Contents
  1. पार्किंसन रोग क्या है?
  2. पार्किंसन रोग के लक्षण क्या है?
  3. पार्किंसन रोग किन कारणों से हो सकता है
  4. पार्किंसन रोग के विभिन्न स्तर कौन-कौन से हैं
  5. पार्किंसन रोग की पहचान कैसे की जा सकती है
  6. पार्किंसन रोग का इलाज कैसे किया जा सकता है –
  7. पार्किंसन रोग के साइड इफेक्ट क्या हो सकते हैं?
  8. पार्किंसन रोग की रोकथाम कैसे करें
  9. पार्किंसन रोग के बारे में सबसे अधिक पूछे जाने वाले सवाल

पार्किंसन रोग कई लोगों के लिए एक नया नाम जरूर हो सकता है, लेकिन यह रोग बहुत पुराना है। इसके विषय में कम जानकारी होने के कारण लोग इसके लक्षणों की पहचान समय रहते नहीं कर पाते। जानकारी के अभाव में लोगों के लिए इसका इलाज करवा पाना भी मुश्किल हो जाता है। दर्ज किए गए आंकड़े इस बीमारी की गंभीरता को बयान करने के लिए अपने आप में काफी हैं। यदि आप भी पार्किंसन नामक इस रोग के बारे में नहीं जानते हैं तो आपको इस लेख में उपलब्ध करवाई गई जानकारी को अवश्य पढ़ना चाहिए। इस लेख के माध्यम से इस रोग के विषय में उत्तम प्रकार की जानकारी उपलब्ध करवाई गई है।

पार्किंसन रोग क्या है?

पार्किंसन एक दिमाग से संबंधित रोग है। इस रोग से तात्पर्य एक प्रकार के ऐसे मानसिक रोग से है जिससे मानव शरीर में कंपकंपी, कठोरता, चलने फिरने में परेशानी होना, संतुलन का अभाव होना तथा अपनी इंद्रियों के बीच में तालमेल न बिठा पाने जैसी समस्याएं उत्पन्न होती है। इस रोग की शुरुआत बहुत ही सामान्य सी लगने वाली बीमारी की तरह होती है, लेकिन धीरे-धीरे समय बीतने के साथ यह एक गंभीर रूप धारण कर लेती है।

पार्किंसन रोग के लक्षण क्या है?

पार्किंसन अपने आप में एक बहुत विविधता वाला रोग है। इसके लक्षण अलग-अलग लोगों में अलग-अलग प्रकार के हो सकते हैं। देखा गया है कि अक्सर इस रोग से जुड़े यह लक्षण शरीर के एक भाग की ओर ही नजर आते हैं, जो उस हिस्से को पूरी तरह से लाचार और खराब कर देते हैं। पार्किंसन रोग के कुछ महत्वपूर्ण और सामान्य लक्षण निम्नलिखित है :-

  • हाथों में कपकपी होना
  • बोलने में हकलाना या फिर गड़बड़ी होना
  • शरीर के अंगों का समन्वय में ना हो पाना
  • सभी अंगो का थका हुआ महसूस होना
  • तेजी से ना चल पाना
  • छोटे छोटे कदमो से चलना कब्ज होना
  • पेशाब की समस्या उत्पन्न होना

ऊपर पार्किंसन रोग के मुख्य लक्षण दिए गए हैं फिर भी डॉक्टरों के अनुसार पार्किंसन रोग पर ऊपर किए गए अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि यदि नीचे लिखे गए पांच लक्षणों में से कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति में नजर आए तो उसे तुरंत अपने डॉक्टर से मिलना चाहिए और अपने सेहत की जांच करानी चाहिए क्योंकि यह लक्षण पार्किंसन रोग की शुरुआत के संकेत भी हो सकते हैं :-

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कार्य क्षमता का कमजोर होना

यदि किसी व्यक्ति की कार्य क्षमता में अचानक से गिरावट आ गई है तो उसे तुरंत अपने डॉक्टर को इस बात की सूचना देनी चाहिए और अपनी डॉक्टर की सलाह के अनुसार अपनी जांच के माध्यम से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कहीं वह पार्किंसन रोग का शिकार तो नहीं हो गया है क्योंकि यह पार्किंसन रोग की शुरुआत का आरंभिक लक्षण हो सकता है।

कंपकंपी होना

पार्किंसन रोग का प्रमुख लक्षण शरीर के अंदर कंपन का उत्पन्न होना है। इसकी शुरुआत शरीर के किसी भी बहुत छोटे से अंग जैसे कि किसी उंगली या फिर हाथ इत्यादि से हो सकती है जो धीरे-धीरे समय बीतने के साथ पूरे शरीर में फैलती हुई चली जाती है।

मांसपेशियों में अकड़न होना

मांसपेशियों का कमजोर होना या मांसपेशियों में अकड़न होना पार्किंसन रोग का शुरुआती लक्षण होता है। ऐसी अवस्था में तुरंत मेडिकल सहायता की मदद लेनी चाहिए ताकि समय रहते इस पर नियंत्रण पाया जा सके।

बात करने में परेशानी होना

यदि किसी व्यक्ति को अचानक ही बात करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है तो उसे तुरंत अपनी जांच करवानी चाहिए क्योंकि यह पार्किंसन रोग की शुरुआत का आरंभिक लक्षण है, जो समय पर इलाज न करवाने पर और अधिक भयानक रूप धारण कर सकता है।

लिखने में दिक्कत होना

अन्य लक्षणों के साथ-साथ पार्किंसन रोग का एक अन्य लक्षण लिखने में दिक्कत होना भी है। इस समस्या के होने पर किसी को भी इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह भी पार्किंसन रोग के महत्त्वपूर्ण लक्षणों में से एक है तथा समय पर इलाज न करवाने पर यह और अधिक बढ़ सकता है।

पार्किंसन रोग किन कारणों से हो सकता है

हालांकि अभी तक मेडिकल साइंस पार्किंसन रोग होने के सही कारणों का पता नहीं लगा पाई है। वैज्ञानिकों ने अपनी शोध के अनुसार तथा पूर्व में हुए मरीजों के ऊपर किए गए अध्ययन के अनुसार पार्किंसन रोग के होने के कुछ कारणों की परिकल्पना की है। वैज्ञानिकों के द्वारा की गई इन परिकल्पना तथा बीमारी के ऊपर किए गए अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पार्किंसन रोग मुख्य रूप से निम्नलिखित कारणों की वजह से हो सकता है

सिर पर किसी चोट का लग जाना

ऐसे लोगों को भी पार्किंसन रोग होने की संभावना काफी ज्यादा होती है जिनके सिर पर जीवन में कभी ना कभी गहरी चोट लगी हो। ऐसे लोगों को कभी भी किसी तरह की लापरवाही नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करना उनके लिए स्वास्थ्य के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।

दिमाग की किसी नस का दब जाना

यदि किसी व्यक्ति के दिमाग की नस किसी कारणवश दब गई है तो उसे पार्किंसन का रोग होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। ऐसे लोगों को जल्दी से जल्दी अपना इलाज शुरू करवाना चाहिए ताकि उन्हें पार्किंसन रोग होने की संभावना कम से कम हो और इलाज के द्वारा इस संभावना को खत्म किया जा सके।

वायरस के संपर्क में आना

अक्सर ऐसा देखा गया है कि पार्किंसन का रोग वायरस के संपर्क में आ जाने के कारण भी हो जाता है। हालांकि ऐसी स्थिति में इसका इलाज एंटीबायोटिक दवाइयों के द्वारा किया जा सकता है। लेकिन फिर भी लोगों को अपनी सेहत का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए तथा किसी भी प्रकार की समस्या महसूस होने पर तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

अनुवांशिक कारणों का होना

पार्किंसन रोग होने का मुख्य कारण, अनुवांशिक कारण भी हो सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति के परिवार में कभी किसी सदस्य को पार्किंसन का रोग रहा हो या हो तो उसे अपनी सेहत का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि ऐसा होने पर उस शख्स को भी पार्किंसन रोग होने का अंदेशा बढ़ जाता है।

प्रदूषित वातावरण का होना

पार्किंसन रोग प्रदूषित वातावरण के कारण भी होता है। प्रदूषित वातावरण में अनेकों प्रकार के कीटाणु हवा के अंदर मौजूद होते हैं। इसी वजह से यदि कोई व्यक्ति प्रदूषित वातावरण में वास करता है तो उसे पार्किंसन रोग जैसी गंभीर बीमारियां होने की संभावना अधिक बढ़ जाती हैं।

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पार्किंसन रोग के विभिन्न स्तर कौन-कौन से हैं

पार्किंसन रोग अपने आप में एक जटिल बीमारी है जो एक बार हो जाने के बाद जीवनशैली को धीरे-धीरे पूर्ण रूप से निष्क्रिय कर देती है। इससे ग्रसित व्यक्ति अपने जीवन में कई मायनों में लाचार महसूस करने लगता है। पार्किंसन का रोग सामान्य से गंभीर बीमारी के संयंत्र तक पहुंच सकता है, जिसके आधार पर इसे पांच स्तर पर बांटा गया है

  • पहला स्तर- पार्किंसन रोग जैसी बीमार का पहला स्तर वह होता है, जिसमें इस बीमारी के लक्षण आसानी से नजर नहीं आते हैं। इस बीमारी की इसी जटिलता के कारण, शुरुआती दौर में इसे समझना बहुत ही मुश्किल होता है और यह निश्चित कर पाना कठिन हो जाता है कि क्या संबंधित व्यक्ति को यह बीमारी हो गई हैअथवा नहीं।
  • दूसरा स्तर- यह रोग बड़ी ही तेजी से हमारे शरीर के अंदर बढ़ता है और कब यह गंभीर होने लगता है इस बात का पता नहीं चल पाता। इस बीमारी का दूसरा स्तर तब होता है जब किसी व्यक्ति को अपने शरीर के किसी भाग में कंपन का अहसास होने लगता है।
  • तीसरा स्तर- तीसरे स्तर में यह बीमारी अपना गंभीर रूप दिखाने लगती है। इस स्तर पर पार्किंसन रोग के लक्षण रोगी के अंदर नजर आने लगते हैं। इस स्तर तक आते-आते इस रोग से पीड़ित व्यक्ति के अंदर अन्य समस्याएं जैसे कि गिलास को पकड़ने में कठिनाई महसूस होना, चाय के कप को उठाने में दिक्कत महसूस करना आदि का सामना करना पड़ता है।
  • चौथा स्तर- चौथे स्तर में यह बीमारी रोगी को पंगु बनाने लगती है। इस स्तर में व्यक्ति खड़े होने में या बैठने में कठिनाई महसूस करता है। उसे चलने फिरने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति के लोगों को चलने फिरने के लिए किसी अन्य के सहारे को लेने की आवश्यकता पड़ती है।
  • पांचवा स्तर- पार्किंसन बीमारी का यह स्तर रोगी के लिए काफी गंभीर साबित होता है। पार्किंसन रोग के इस अंतिम स्तर से पीड़ित लोगों की मानसिक क्षमता धीरे-धीरे प्रभावित होने लगती है, जिसके कारण रोगी बहुत ही असहज महसूस करने लगते हैं। इस स्तर के पर मौजूद रोगियों में याददाश्त कम होने, लगातार दुविधा में रहने जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।

पार्किंसन रोग की पहचान कैसे की जा सकती है

हम सभी लोग जानते हैं किसी भी बीमारी का समय रहते इलाज करवाने पर उस रोग के खत्म होने की संभावना काफी अधिक होती है। इसी प्रकार अगर किसी व्यक्ति को पार्किंसन का रोग होने पर समय रहते इलाज मिल जाए तो इस बात की संभावना प्रबल हो जाती है कि वह इलाज के बाद इस बीमारी से पूरी तरह से उबर जाएगा। परंतु ऐसा देखा गया है कि पार्किंसन रोग में समय रहते बीमारी की पहचान नहीं हो पाती जिसकी वजह से यह रोग बहुत ही गुपचुप तरीके से किसी भी व्यक्ति को अपना शिकार बना लेता है। यदि किसी भी व्यक्ति को पार्किंसन रोग से पीड़ित होने की शंका महसूस हो तो वह नीचे लिखे तरीकों से इस बात की पुष्टि कर सकता है कि क्या वह पार्किंसन रोग से पीड़ित है

  • अपनी हेल्थ हिस्ट्री या स्वास्थ्य के इतिहास की जांच पड़ताल करना- पार्किंसन रोग की पहचान करने का सबसे आसान तरीका अपने बारे में पूरी तरह से जानकारी जुटाना है। इसमें आप अपने बीते हुए समय के स्वास्थ्य की जांच कर सकते हैं। डॉक्टर को इस बात का पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए कि रोगी के अंदर इस बीमारी के लक्षण पिछले कितने समय से मौजूद रहे हैं।
  • सीटी स्कैन के माध्यम से- सीटी स्कैन भी पार्किंसन रोग की जांच करने का एक तरीका है। अक्सर डॉक्टर सीटी स्कैन के माध्यम से पार्किंसन के रोग की पहचान करते हैं। इस टेस्ट के माध्यम से रोगी के शरीर के भागों को अंदरूनी रूप से देखा जाता है और इस बात को समझने का प्रयास किया जाता है कि पार्किंसन का रोग रोगी के अंदर किस हद तक बढ़ चुका है।
  • एम आर आई स्कैन करना- सीटी स्कैन की तरह एम आर आई स्कैन भी पार्किंसन रोग की जांच करने का एक डिजिटल तरीका है। एम आर आई स्कैन के माध्यम से डॉक्टर, रोगी के मस्तिष्क के अंदरूनी भागों की जांच करता है और इस बात का पता लगाने की कोशिश करता है कि आखिर मस्तिष्क के किस भाग में इस रोग ने अपने पैर पसारे हुए हैं।
  • डोपामाइन ट्रांसपोर्ट कराना- पार्किंसन रोग के विषय में मेडिकल साइंस धीरे-धीरे तरक्की की ओर बढ़ रहा है। आज के समय में डोपामाइन ट्रांसपोर्टर नामक टेस्ट पार्किंसन के रोग की पहचान करने में काफी मददगार साबित हो रहा है और यह डॉक्टर के बीच काफी लोकप्रिय भी हो चुका है। हालांकि यह टेस्ट पार्किंसन रोग की सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं करवाता है परंतु फिर भी ये डॉक्टर को यह संकेत दे देता है कि व्यक्ति के मस्तिष्क में कुछ गड़बड़ी है या नहीं।

पार्किंसन रोग का इलाज कैसे किया जा सकता है –

जिस प्रकार हम यह जान चुके हैं कि पार्किंसन रोग अपने आप में एक ऐसी बीमारी है जो एक बार हो जाने पर व्यक्ति के पूरे जीवनभर के लिए पंगु और लाचार बना सकती है तथा इस से पीड़ित व्यक्ति को बहुत अधिक मुश्किलों का सामना करने लगता है, लेकिन यदि इस बीमारी का समय रहते इलाज करवा लिया जाए तो इस पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। जैसे ही किसी व्यक्ति को इस बात की जानकारी मिले कि वह पार्किंसन रोग से पीड़ित हो चुका है तो उसे बिना समय गवाएं किसी अच्छे डॉक्टर / विशेषज्ञ के द्वारा तुरंत ही अपना इलाज शुरू करवा देना चाहिए, जिससे कि समय पर मिले इलाज से वह जल्दी स्वस्थ हो सके। पार्किंसन से पीड़ित लोगों का इलाज निम्नलिखित पांच माध्यमों से किया जा सकता है:-

जीवन शैली में बदलाव के द्वारा

पार्किंसन रोग का इलाज करने का सबसे आसान तरीका अपनी जीवनशैली में बदलाव करना। इसके लिए आप स्वास्थ्य वर्धक भोजन करें, व्यायाम को अपनाएं, शरीर का संतुलित वजन बनाए रखने का प्रयास करें। यह सभी उपाय अति लाभकारी और कारगर सिद्ध हुए हैं। इसके अलावा आपको अपनी बुरी आदतों को पूरी तरह से छोड़ देना भी इस रोग में काफी लाभदायक सिद्ध होता है।

दवाई लेना तथा उनका नियमित सेवन करना

जीवन शैली में बदलाव लाना पार्किंसन रोग के लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध होता है तथा इसके साथ साथ पार्किंसन रोग के लिए दवाइयां लेना भी इस रोग के इलाज में सहायक साबित हो सकता है। डॉक्टर मरीज की हालत को देखते हुए उसे दवाइयां लेने की सलाह देते हैं। डॉक्टर के द्वारा प्रदान की गई दवाइयों के द्वारा दिमाग की बंद नसों को खोलने का कार्य करने का प्रयास किया जाता है, जिसके द्वारा पार्किंसन रोग को खत्म करने की कोशिश की जाती है

थेरेपी के माध्यम से

पार्किंसन रोग को दवाइयों के साथ-साथ थेरेपी के माध्यम से भी ठीक किया जा सकता है। थेरेपी लेना इस रोग के उपचार में काफी लाभदायक साबित होता है। इस प्रकार की थेरेपीयों को इस प्रकार से नियोजित किया जाता है कि वह दिमाग की नसों को आराम पहुंचाने के साथ-साथ दिमाग की नसों के अंदर खून के प्रवाह को सुचारू रूप से चलने में सहायता प्रदान करती हैं। इससे पार्किंसन रोग में रोगियों को काफी आराम मिलता है।

एक्सरसाइज करना

हम सभी यह जानते हैं कि व्यायाम हमारे लिए हर रूप में लाभकारी साबित होता है। पार्किंसन रोग में भी डॉक्टर, मरीज को कुछ विशेष प्रकार की एक्सरसाइज करने की सलाह देते हैं। इन एक्सरसाइज के माध्यम से मरीज की शारीरिक दुर्बलता को दूर करने में मदद मिलती है और जिसके माध्यम से पार्किंसन रोग को ठीक करने में सहायता प्राप्त होती है।

डीप ब्रेन स्टिमुलेशन

अगर ऊपर लिखे सभी उपायों को करने के बावजूद भी मरीज को आराम नहीं मिलता है, तो डॉक्टर मरीज को सर्जरी करवाने की सलाह देते हैं। इसके लिए डॉक्टर डीप ब्रेन स्टिमुलेशन का इस्तेमाल करते हैं। यह एक अत्यंत आधुनिक प्रक्रिया है, इस प्रक्रिया में डॉक्टर, मरीज के दिमाग के हिस्से में इलेक्ट्रोड्स को लगाते हैं। इन इलेक्ट्रोड्स को जनरेटर से जोड़कर मस्तिष्क की नसों को शांत किया जाता है। जिससे रोगी को आराम प्राप्त होता है।

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पार्किंसन रोग के साइड इफेक्ट क्या हो सकते हैं?

अब तक हम यह समझ चुके हैं कि पार्किंसन एक गंभीर बीमारी है। इसके विषय में सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोगों को इसके विषय में जानकारी का अभाव है। आमतौर पर लोगों के द्वारा पार्किंसन को लाइलाज बीमारी समझा जाता है। इसी कारण इस रोग से पीड़ित रोगी को कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिसके कारण अक्सर डॉक्टर को यह कहते हुए सुने जा सकता हैं कि इस बीमारी का इलाज रोगी को समय रहते करवा लेना चाहिए, अन्यथा यह बीमारी समय के साथ बहुत ही गंभीर होती हुई चली जाती है। इस मानसिक रोग से पीड़ित लोग अगर समय पर अपने ऊपर ध्यान ना दें तो उनके लिए यह समस्या जटिल और लाइलाज हो जाती है। समय पर इलाज कराने से रोगी को निम्नलिखित साइड इफेक्ट से भी बचाया जा सकता है:-

  • बोलने में परेशानी होना- पार्किंसन रोग हमारे शरीर के कई हिस्सों को बेकार कर देता है। इस रोग में जो सबसे मुख्य साइड इफेक्ट देखने को मिलता है, वह है बोलने में परेशानी का होना। हालांकि यह इस रोग का केवल एक लक्षण मात्र ही है लेकिन इस बीमारी का इलाज समय पर ना होने की वजह से यह परेशानी बहुत ज्यादाबढ़ सकती है।
  • निगलने या चबाने में परेशानी होना- हमारे शरीर की मांसपेशियों के कमजोर होने या उनके पूरी तरह से शिथिल हो जाने के कारण पार्किंसन रोग से पीड़ित लोगों को कई बार कुछ भी खाने की चीजों को निकलने में परेशानी महसूस होने लगती है।
  • नींद में कमी हो जाना- पार्किंसन का रोग मरीज को कई प्रकार से तनाव देता है। मरीज की दुर्बलता ही एकमात्र तनाव का कारण नहीं होती, बल्कि यह रोग मस्तिक से जुड़ा होने के कारण रोगी में अन्य प्रकार की मानसिक दिक्कतों को भी उत्पन्न करने लगता है। पार्किंसन रोग से पीड़ित रोगी को अक्सर यह शिकायत करते हुए देखे जाते हैं कि उन्हें नींद नहीं आती है। कई बार तो यह समस्या इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि उन्हें इसके लिए मेडिकल सहायता की जरूरत पड़ती है। इस समस्या को ठीक होने में समय भी काफी लग सकता है।
  • तनाव से पीड़ित हो जाना- पार्किंसन एक प्रकार का मानसिक रोग है, इससे पीड़ित लोगों को कुछ समय के बाद अन्य मानसिक दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। जिसके कारण यह हमारे सामने एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण समस्या के रूप में सामने आता है।
  • काम भावना में कमी होना- अक्सर ऐसा देखा गया है कि पार्किंसन रोग से पीड़ित लोगों के अंदर काम भावना की कमी हो जाती है। यह रोग, रोगी के मन को अंदर तक हताश और निराश कर देता है। धीरे-धीरे रोगी अपनी इच्छाओं में कमी महसूस करने लगता है। इस चीज का असर उनकी व्यक्तिगत जिंदगी के ऊपर भी पड़ता है और उसके व्यक्तिगत रिश्तों में खटास आनी शुरू हो जाती है।

पार्किंसन रोग की रोकथाम कैसे करें

हालांकि पार्किंसन रोग काफी लोगों को अपना शिकार बनाता है परंतु इसके विषय में कम जानकारी होने के कारण बहुत कम लोग यह जान पाते हैं कि वह इस रोग से पीड़ित हैं और कई बार कई लोग इस रोग को जानने के बावजूद भी वे इसे स्वीकार करने में काफी देर कर देते हैं। इसी वजह से बहुत सारे लोगों को काफी सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। परंतु इसके बावजूद राहत की बात यह है कि यदि कोई व्यक्ति नीचे लिखी हुई पांच बातों का पालन करें तो वह पार्किंसन रोग की रोकथाम आसानी से कर सकता है और इस रोग का शिकार होने से अपने आपको तथा अपने परिवार को बचा सकता है

पेस्टीसाइड युक्त चीजों से दूरी बनाए रखना

हमने पार्किंसन रोग होने के कारणों को ऊपर स्पष्ट किया है जिसमें यह बताया गया है कि दूषित वातावरण और रसायन युक्त वातावरण इस रोग को होने का एक मुख्य लक्षण है। यदि हम पेस्टिसाइड जैसे रसायनों से खुद को दूर रखें और स्वच्छ तथा रसायन रहित वातावरण में अपना जीवन व्यतीत करें तो हम इस रोग की रोकथाम कर सकते हैं।

ताजी सब्जियों का सेवन करना

हमारा खान-पान हमारे जीवन जीने के तरीके को व्यक्त करता है तथा हमारे खान-पान का हमारी सेहत पर सीधा असर होता है। इसलिए हम सभी को अपने खानपान पर विशेष रुप से ध्यान देना चाहिए तथा अपने खान-पान को पौष्टिक तथा संतुलित करके अपने शरीर को उचित पोषण मुहैया कराना चाहिए। पार्किंसन रोग की रोकथाम के लिए ताजी सब्जियों तथा मौसमी फलों का सेवन बहुत बेहतर और उत्तम विकल्प साबित हो सकता है।


ग्रीन टी का सेवन करना

पार्किंसन रोग के अंदर कैफीन का प्रयोग नुकसानदायक साबित होता है। अक्सर देखा गया है कि डॉक्टर पार्किंसन के मरीजों को ग्रीन टी पीने की सलाह देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ग्रीन टी के अंदर कैफीन की मात्रा बहुत कम होती है तथा ग्रीन टी के अंदर कई प्रकार के गुणकारी तत्व भी मौजूद होते हैं।


एक्सरसाइज करना

व्यायाम हमारे शरीर को हष्ट पुष्ट बनाने के साथ-साथ हमें रोगों से भी दूर रखने में सहायता प्रदान करता है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि नियमित रूप से व्यायाम करने वाले लोगों के अंदर पार्किंसन जैसे रोग होने की संभावना काफी हद तक कम होती है।

नियमित हेल्थ चेकअप करवाना

यदि किसी भी रोग को होने से पहले ही रोक दिया जाए या फिर उसका पता हमें उसकी शुरुआत में चल जाए तो उसे रोक के ऊपर काबू पाने में काफी सहायता मिलती है। इसलिए पार्किंसन रोग के बचाव के लिए नियमित हेल्थ चेकअप करवाना सबसे बेहतर और उपयोगी उपाय हैं। इसलिए इसका पालन हम सभी लोगों को करना चाहिए हम सभी लोगों को समय समय पर अपना हेल्थ चेकअप करवाते रहना चाहिए ताकि हमें इस बात की संतुष्टि रहे कि हम पूरी तरह से सेहतमंद है और किसी भी रोग ने हमारे अंदर पैर नहीं पसारे हैं।

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पार्किंसन रोग के बारे में सबसे अधिक पूछे जाने वाले सवाल

प्रश्न 1. पार्किंसन रोग कैसे शुरू होता है?

उत्तर- पार्किंसन के रोग के बारे में कई प्रकार के अध्ययन किए गए हैं तथा इन अध्ययनों के माध्यम से यह पता चलता है कि पार्किंसन के रोग की शुरुआत मुख्य रूप से दिमाग की किसी नस के दब जाने के कारण या फिर उसके क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण होती है। यदि इस बीमारी को समय रहते उचित इलाज ना मुहैया कराया जाए तो यह बीमारी कुछ ही समय में गंभीर रूप धारण कर लेती है। कई बार तो यह बीमारी पूरी प्रकार से लाइलाज हो जाती है।

प्रश्न 2. क्या पार्किंसन रोग की पहचान किसी टेस्ट के माध्यम से की जा सकती है?

उत्तर- धीरे-धीरे मेडिकल साइंस पार्किंसन रोग के विषय में अत्याधिक जानकारियां जुटाने में सक्षम हो रहा है। इन जानकारियों के माध्यम से डॉक्टर रोगी के अंदर मौजूद पार्किंसन रोग को समझने में सहायता प्राप्त करते हैं। अमूमन ऐसा देखा गया है पार्किंसन रोग की पहचान करने के लिए डॉक्टर कुछ टेस्ट जैसे एम आर आई और सीटी स्कैन का प्रयोग करते हैं। यह टेस्ट रोगी के अंदर मौजूद पार्किंसन रोग की सही स्थिति और स्तर का का पता लगाने में सहायक सिद्ध होते हैं जिससे कि रोगी का इलाज करने में मदद मिलती है।

प्रशन 3. पार्किंसन रोग का इलाज कैसे किया जा सकता है?

उत्तर- पार्किंसन का रोग अपने आप में एक बहुत ही जटिल समस्या है क्योंकि यह रोग हमारे मस्तिष्क से जुड़ा हुआ होता है। हालांकि अभी तक इस रोग के विषय में कोई भी सटीक इलाज उपलब्ध नहीं है, लेकिन मेडिकल अध्ययनों के आधार पर तथा पूर्व में हुए मरीजों के आधार पर ऐसे कई प्रकार के तरीके विकसित किए गए हैं जिनके माध्यम से इस बीमारी को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। इस रोग में दवाइयां, एक्सरसाइज तथा जीवन शैली में बदलाव करके रोगी के जीवन में काफी हद तक सुधार लाया जा सकता है। इस प्रकार के बदलाव रोगी की स्थिति को सुधारने में काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं।

प्रश्न 4. पार्किंसन रोग को ठीक करने की सबसे अच्छी एक्सरसाइज कौन सी है?

उत्तर- व्यायाम पार्किंसन रोग को हम से दूर रखने में हमारी मदद करता है। यदि हम अपनी नियमित जीवन शैली में इसका प्रयोग करना प्रारंभ कर दें तो हम इससे काफी लाभ उठा सकते हैं। पार्किंसन रोग के हो जाने के बाद भी, व्यायाम रोगी के जीवन में सुधार लाने में मदद करता है। योग और हाथ पैरों की एक्सरसाइज करके रोगी अपने जीवन शैली में काफी सुधार ला सकता है। यह एक्सरसाइज इस रोग को ठीक करने में काफी सहायता प्रदान करती हैं।

प्रश्न 5. पार्किंसन रोग से पीड़ित व्यक्ति को किस प्रकार का भोजन नहीं करना चाहिए?

उत्तर- पार्किंसन रोग से पीड़ित व्यक्ति को अपने खानपान का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। यदि हम अपने भोजन में पौष्टिक पदार्थों का सेवन करें तथा हरी सब्जियों और ताजे फलों को अपने भोजन में शामिल करें तो हम पार्किंसन रोग से एक हद तक अपना बचाव कर सकते हैं। पार्किंसन रोग से पीड़ित व्यक्ति को ज्यादा चीनी का प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा उसे कैफीन युक्त खाद्य पदार्थों से भी उचित दूरी बना कर रखना चाहिए, क्योंकि यह खाद्य पदार्थ रोगी की स्थिति में और अधिक परेशानियां उत्पन्न कर सकते हैं और उसकी सेहत को खराब कर सकते हैं।

प्रश्न 6. पार्किंसन रोग कितनी तेजी से बढ़ता है?

उत्तर- पार्किंसन रोग शुरुआत में अपने लक्षण जाहिर नहीं करता तथा इसके लिए कोई सटीक माध्यम भी उपलब्ध नहीं है। हमारे समाज में इस रोग के प्रति जानकारी का भी काफी अभाव है। अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि एक बार यह रोग हो जाने के बाद, यह काफी तेजी से शरीर के अंदर फैलना शुरू कर देता है। यह मानव शरीर के छोटे से छोटे अंग से लेकर पूरे शरीर में फैल जाता है और एक बार इसका फैलाव यदि पूरे शरीर में हो जाए तो इसे काबू में करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।

प्रश्न 7. पार्किंसन रोग से पीड़ित व्यक्ति कितने लंबे अंतराल तक का जीवन जी सकता है?

उत्तर- डॉक्टर के अनुसार पार्किंसन एक जटिल बीमारी है, जिसमें कई बार तो रोगी का जीवन पूर्ण रूप से पंगु हो जाता है। अध्ययनों के आधार पर यह पता चलता है कि पार्किंसन रोग से पीड़ित व्यक्ति की जिंदगी, सेहतमंद लोगों की तुलना में छोटी होती है। परंतु इसके बावजूद बीमारी पर किए गए अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि पार्किंसन रोग की पहचान होने के बाद यदि रोगी को सही प्रकार का इलाज मुहैया कराया जाए तो वह पंद्रह से बीस साल तक का (या इससे भी अधिक) जीवन जी सकता है।

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