स्तन-कैंसर – जानिये ये 10 मिथक और वास्तविक तथ्य

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breast cancer myths facts

यदि किसी को स्तन-कैंसर से पीड़ित व्यक्ति के साथ रहने का मौका नहीं मिला है तो काफी संभावना है कि उनके मन में इस से सम्बंधित कई भ्रांतियां हो सकती हैं. यह सच है कि स्तन-कैंसर के बारे में समाज में कई तरह के मिथक प्रचलित हैं. ज़रूरी है की आप को इस कैंसर की वास्तविकता मालुम हो ताकि आप न सिर्फ सही सलाह दे सकें बल्कि बीमारी को सही तरह से समझ सकें.

मिथक: अगर मेरे परिवार या खानदान में किसी को स्तन-कैंसर नहीं हुआ है तो मुझे भी नहीं हो सकता.
वास्तविकता: ज़्यादातर स्तन-कैंसर के रोगियों के परिवार में अन्य किसी को यह बीमारी नहीं होती.

यह देखा गया है कि लोग स्तन-कैंसर को जेनेटिक (आनुवंशिक) बीमारी समझते हैं. जबकि वास्तविकता ये है कि स्तन-कैंसर के सिर्फ 5-10% केस ही जेनेटिक होते हैं, सभी नहीं. ज़्यादातर यह बता पाना संभव नहीं होता कि क्यों किसी महिला को स्तन कैंसर की बीमारी हुई. स्तन-कैंसर की सम्भावना बढ़ने वाले मुख्य जोखिम तत्त्व हैं: बढती उम्र, स्त्रीलिंग होना और अत्यधिक मोटापा. यदि किसी के परिवार में स्तन-कैंसर का इतिहास रहा है (ख़ास तौर पर 50 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में) तो समय समय पर स्क्रीनिंग जांच करते रहनी चाहिए. यदि खानदान में स्तन-कैंसर के अलावा अन्य कैंसर का इतिहास रहा है तब भी स्तन-कैंसर के लिए ज़रूरत से अधिक जागरूक रहना चाहिए.

मिथक: यदि आप पौष्टिक आहार का सेवन करें, शराब न पियें, व्यायाम करें और वजन संतुलित रखें, तो आपको स्तन कैंसर से डरने की ज़रूरत नहीं है.
वास्तविकता: यह सभी तथ्य स्तन-कैंसर होने का खतरा कम करते हैं पर खतरे को पूरी तरह ख़त्म नहीं करते.

इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि संतुलित वजन, पौष्टिक आहार, व्यायाम और नशे से दूर रहने की आदतों से स्तन-कैंसर में कमी आती है. पर ऐसा करने से इस बात की गारंटी नहीं होती कि स्तन कैंसर हो ही नहीं सकता. कोई भी महिला वस्तुतः स्तन कैंसर के खतरे से 100% सुरक्षित नहीं होती. कई विज्ञापन स्तन-कैंसर से पूरी तरह से बचाव के लिए कुछ ख़ास विटामिन का सेवन करने की सलाह देते हैं. इन दावों में कोई सच्चाई नहीं होती. स्वस्थ रहने की कोशिश करना ज़रूरी है पर ऐसा कोई नुस्खा नहीं है जो स्तन-कैंसर से शत-प्रतिशत बचाव की गारंटी दे सके.

मिथक: अंडरआर्म (बगल या कांख) में लगाये जाने वाले डिओडोरेंट से स्तन-कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.
वास्तविकता: डिओडोरेंट के इस्तेमाल से स्तन-कैंसर का कोई सम्बन्ध नहीं देखा गया है.

अक्सर हमें आस-पड़ोस में ऐसी बातें सुनने को मिल जाती हैं कि अंडरआर्म (बगल या कांख) में लगाये जाने वाले डिओडोरेंट, ख़ास तौर पर जिनमें एल्युमीनियम होता है, स्तन-कैंसर का खतरा बढ़ाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि इनमें होने वाले केमिकल त्वचा के ज़रिये रक्त में और लिम्फ में मिल जाते हैं और कैंसर उत्पन्न करते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि बगल के बाल साफ़ करने से वहाँ की त्वचा में सूक्ष्म छिद्र हो जाते हैं जो इन कैंसर पैदा करने वाले केमिकल को शरीर के अन्दर जाने में मदद करते हैं. ऐसा भी कहा जाता था कि ये डिओडोरेंट बगल (कांख) से पसीने का निकलना कम करते हैं, जिस वजह से हानिकारक पदार्थ शरीर में ही रह जाते हैं और कैंसर पैदा करते हैं. लेकिन वैज्ञानिक तौर पे ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिले हैं जिनसे ये सिद्ध हो सके कि डिओडोरेंट में पाए जाने वाले केमिकल से स्तन-कैंसर का खतरा बढ़ता है.

मिथक: ब्रा के अन्दर मोबाइल-फ़ोन रखने से स्तन-कैंसर का खतरा बढ़ता है.
वास्तविकता: मोबाइल फ़ोन और स्तन-कैंसर में कोई भी सम्बन्ध नहीं पाया गया है. हालांकि मोबाइल फ़ोन द्वारा स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों की अभी भी जांच-पड़ताल हो रही है.

कई मीडिया रिपोर्ट में ये कहा जाता है कि मोबाइल फ़ोन को ब्रा के अन्दर रखने से, रेडियो-फ्रीक्वेंसी रेडिएशन की वजह से, स्तन-कैंसर का खतरा बढ़ता है. पर मौजूदा वैज्ञानिक तथ्य और रिसर्च ऐसा नहीं मानते. एहतियात के तौर पर मोबाइल फ़ोन बनाने वाली कंपनियां उपभोक्ता को यह सलाह अवश्य देती हैं कि मोबाइल फ़ोन को अपने शरीर के बहुत पास न रखा जाये. इसलिए जब तक आगे की रिसर्च का नतीजा न आये, आप चाहें तो अपने मोबाइल को अपनी ब्रा के अन्दर न रखें.

मिथक: हर साल मेम्मोग्राम करवाने से स्तन कैंसर को आरंभिक अवस्था में ही पकड़ा जा सकता है.
वास्तविकता: मेम्मोग्राम स्तन-कैंसर की शीघ्र-जांच करने के लिए उपयुक्त है पर ये निश्चित नहीं है कि इसकी मदद से आरंभिक अवस्था में ही स्तन-कैंसर की पहचान हो जाएगी.

मैमोग्राफी स्तन-कैंसर के निदान के लिए (डायग्नोसिस के लिए) बहुत अच्छा टेस्ट है. पर कभी कभी ये स्तन-कैंसर को नहीं पकड़ पाता. ऐसा माना जाता है कि लगभग 20% केस में स्तन कैंसर होने के बावजूद मैमोग्राफी का परिणाम ठीक आता है. ख़ास-तौर पर ऐसे गलत परिणाम उन महिलाओं में आते हैं जिनके स्तन दृढ होते हैं, मुख्य तौर पर जवान महिलाएं. कई बार ऐसा भी देखा गया है कि महिलाओं में कई सारे मेम्मोग्राम की रिपोर्ट ठीक थी और फिर उनमें एडवांस स्टेज का स्तन-कैंसर पाया गया. इसलिए ये ज़रूरी है कि हर माह स्तन की जांच स्वयं की जाए और डॉक्टर द्वारा हर साल स्तन-जांच करायी जाए.

मिथक: स्तन-कैंसर में हमेशा स्तन में महसूस की जाने वाली गाँठ पैदा हो जाती है.
वास्तविकता: यह ज़रूरी नहीं है कि स्तन कैंसर में हमेशा गाँठ महसूस की जाये, खासतौर पे प्रारम्भिक दौर के स्तन-कैंसर में.

यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं है कि स्तन-कैंसर में हमेशा गाँठ महसूस की जाये. कभी कभी यदि गाँठ है तो इसका अर्थ है कि कैंसर लिम्फ नोड में फ़ैल चुका है. इसलिए स्तन की स्वयं द्वारा की जाने वाली जांच ज़रूरी है पर इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है कि मेम्मोग्राम न कराया जाये. कई लोग ये कहते हैं कि अगर गाँठ में दर्द है तो ये स्तन कैंसर हो ही नहीं सकती, पर ऐसा हमेशा सच नहीं होता. ऐसा भी माना जाता है कि यदि गाँठ सख्त है, गतिमान नहीं है और खुरदुरी है तभी चिंता करने की आवश्यकता है अन्यथा नहीं – पर यह भी पूरी तरह सच नहीं है.

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मिथक: अत्यधिक मीठे के सेवन से स्तन-कैंसर का खतरा बढ़ता है.
वास्तविकता: ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है जिससे ये पता लगता हो कि मीठे के अधिक सेवन से स्तन-कैंसर होता है.

अक्सर ये सुना जाता है कि कैंसर की कोशिकाओं को जीने के लिए मीठे की बहुत ज़रूरत होती है तथा अधिक मीठा खाने वालों के अन्दर कैंसर होने की सम्भावना ज्यादा होती है. असल में हर कोशिका को जीने के लिए उर्जा चाहिए होती है और कार्ब्स (ग्लूकोस का स्त्रोत) उर्जा का मुख्य स्त्रोत होते हैं. ये तो सच है कि कैंसर की कोशिकाएं सामान्य कोशिकाओं के मुकाबले बहुत जल्दी चीनी की खपत कर लेती हैं. पर इसका यह मतलब बिलकुल नहीं है कि अधिक मीठा खाने से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. चूहों में हुए एक वैज्ञानिक प्रयोग में अधिक मीठा खाने और स्तन कैंसर होने में सम्बन्ध पाया गया पर इंसानों में अभी तक ये सिद्ध नहीं किया गया है. यदि उलटे तौर पे देखें तो हम पायेंगे कि ज्यादा मीठा खाने से वजन बढ़ता है और अधिक वजन से स्तन-कैंसर का खतरा बढ़ता है. कुछ वैज्ञानिक प्रयोगों में ये पता चला है कि डायबिटीज से प्रभावित मरीजों में स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है – ख़ास-तौर से एडवांस स्टेज के कैंसर का. पर अभी तक ये बात पक्के तौर से नहीं कही जा सकती कि यह सम्बन्ध इस वजह से है कि डायबिटीज के मरीजों का वजन अधिक होता है या इस वजह से कि डायबिटीज के मरीजों के रक्त में ग्लूकोस की मात्रा ज्यादा होती है.

मिथक: हर किस्म के स्तन-कैंसर का इलाज एक ही तरह से किया जाता है.
वास्तविकता: कैंसर की स्टेज और मरीज की हालत के अनुसार इलाज तय किया जाता है.

स्तन-कैंसर के इलाज में कई बातों के बारे में विचार करना पड़ता है, जैसे कि:

  • कैंसर का आकार, स्टेज और ग्रेड और लोकेशन (स्थान)
  • स्तन-कैंसर जेनेटिक कमी की वजह से है या नहीं (BRCA1 या BRCA2 जीन में कमी की वजह से)
  • कैंसर का विकास हॉर्मोन से हो रहा है या नहीं (कैंसर की कोशिकाएं एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन रिसेप्टर के लिए सकारात्मक हैं या नहीं)
  • स्तन-कैंसर HER2 जीन के लिए सकारात्मक है या नहीं
  • इलाज के दौरान होने वाले साइड-इफ़ेक्ट के बारे में मरीज की इच्छा

मिथक: आरंभिक अवस्था में इलाज किया जाने वाला स्तन-कैंसर फिर वापस नहीं हो सकता.
वास्तविकता: आरंभिक-स्टेज के स्तन-कैंसर के इलाज में भी कैंसर वापस होने का खतरा बना रहता है.

ऐसा भी सुना गया है कि कुछ लोग ये विश्वास करते हैं कि यदि 5 वर्ष तक कैंसर वापस ना आये तो फिर ये कभी वापस नहीं आता. पर यह सच नहीं है. ये ज़रूर है कि कैंसर के वापस होने का सबसे ज्यादा चांस शुरूआती 2-5 वर्षों में ही रहता है, पर इसका मतलब ये नहीं कि इस अवधि के आगे पीछे कैंसर हो ही नहीं सकता. प्रथम डायग्नोसिस के 20 साल बाद भी प्रथम स्टेज के हॉर्मोन-पॉजिटिव स्तन-कैंसर में 15-20% कैंसर के दुबारा होने का खतरा रहता है. दुबारा होने पर भी यह ज़रूरी नहीं है कि कैंसर स्तन में ही होगा – यह शरीर के किसी अन्य भाग में भी पाया जा सकता है, जैसे कि हड्डी, लीवर या फेफड़े. यदि किसी को शुरूआती अवस्था का स्तन-कैंसर है तो इलाज के बाद कैंसर दुबारा होने के खतरे की पड़ताल इन बातों से की जा सकती है:

  • प्राथमिक कैंसर का आकार
  • प्रभावित लिम्फ नोड्स की संख्या
  • कैंसर कोशिकाओं का ग्रेड
  • कैंसर हॉर्मोन रिसेप्टर के लिए पॉजिटिव (सकारात्मक) है या नहीं
  • इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं

मिथक: स्तन कैंसर केवल मध्यम-उम्र की तथा बुजुर्ग महिलाओं में ही देखा जाता है.
वास्तविकता: स्तन कैंसर कम उम्र की महिलाओं और पुरुषों में भी देखा जाता है.

हर 25 में से 1 केस में एडवांस स्टेज का स्तन-कैंसर 40 वर्ष से कम उम्र की महिला में पाया जाता है. आंकड़ों की मानें तो लगभग 25% महिलाओं में स्तन-कैंसर पचासवें दशक में पाया जाता है. पुरुषों में भी स्तन कैंसर हो सकता है पर ये काफी कम है. सभी स्तन कैंसर को जोड़ लें तो पुरुषों में मात्र 1% केस ही देखने को मिलते हैं. 2019 में अमेरिका में लगभग 2670 पुरुषों में स्तन कैंसर पाया गया.

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