प्री-एक्लेम्पसिया से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातें समझिये

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यदि आप स्वयं प्री-एक्लेम्पसिया से पीड़ित है या किसी ऐसे को जानते हैं, जो प्री-एक्लेम्पसिया से पीड़ित है तो यहां दी गई जानकारी को आप उनके साथ साझा कर सकतें हैं। गर्भवती महिलाओं में हाई ब्‍लड प्रेशर (उच्च रक्तचाप), पेशाब में प्रोटीन आना, पैरों, टांगों और बांह में सूजन आने की स्थिति को प्रीक्‍लैंप्‍सिया कहते हैं। प्री-एक्लेमप्सिया प्लेसेंटा से रक्त के प्रवाह को कम कर देता है। इसका मतलब है कि आपके गर्भस्थ शिशु को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं मिल रहे होंगे, जिससे उसका विकास बाधित हो सकता है। यहां दी गई जानकारी आपके साथी, रिश्तेदार, मित्र या ऐसे किसी भी इंसान के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, जो इस बीमारी से पीड़ित हों। यहां दी गई इस जानकारी का मुख्य उद्देश्य यह है कि आप अपने स्वास्थ्य को अधिक बेहतर ढंग से समझें और यदि आप प्री-एक्लेमप्सिया जैसी बीमारी से पीड़ित है तो इस बीमारी से जुड़े देखभाल के विकल्पों को और बेहतर ढंग से समझने में आपकी मदद करना है। आपकी स्वास्थ्य सेवा टीम आपके साथ आपकी स्वास्थ्य की स्थिति पर चर्चा करने और आपके सवालों के जवाब देने में आपकी मदद कर सकते हैं। इस विषय से जुड़ी जानकारियों में निम्नलिखित बातें मुख्य रूप से शामिल होती हैं।

प्री-एक्लेम्पसिया क्या है

प्री-एक्लेम्पसिया एक प्रकार का विकार होता है जो आमतौर पर गर्भावस्था के 20 सप्ताह के बाद दिखाई देना शुरू होता है। वास्तव में यह एक संयोजन होता है :

  • बढ़ा हुआ रक्तचाप (उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर)
  • आपके मूत्र में प्रोटीन (proteinuria)
  • शरीर में सूजन

गर्भवती महिलाओं में हाई ब्‍लड प्रेशर, पेशाब में प्रोटीन आना, पैरों, टांगों और बांह में सूजन आने की स्थिति को प्रीक्‍लैंप्‍सिया कहते हैं। प्री-एक्लेमप्सिया का सटीक कारण अभी तक पूरी तरह से समझ में नहीं आ सका है। अक्सर प्री-एक्लेम्पसिया का कोई लक्षण नहीं आता। जब आप गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से अपने ब्लड प्रेशर (रक्तचाप) और मूत्र का परीक्षण (यूरीन टेस्ट) करवाते हैं तो इसका पता चलता है। यही कारण है कि आपको डॉक्टर से मिलने के समय इस प्रकार के टेस्ट करवाने के लिए ही यूरीन सैंपल (मूत्र का नमूना) लाने को कहा जाता है।

यह जानना क्यों जरूरी है कि क्या आपको प्री-प्री-एक्लेम्पसिया है अथवा नहीं

गर्भावस्था के दौरान की गई एक रिसर्च के अनुसार, 100 महिलाओं में दो से आठ महिलाओं के बीच प्री-एक्लेम्पसिया जैसी जटिलता को देखा गया है, जो कि आम बात है। यदि समय रहते प्री-एक्लेम्पसिया का पता चल जाए तो यह आमतौर पर इतनी ज्यादा भयानक नहीं होती है। समय-समय पर अपना चेकअप करवाते रहने से आपको समय रहते प्री-एक्लेमप्सिया का पता चल सकता है, जिससे प्री-एक्लेम्पसिया आपकी गर्भावस्था पर बहुत कम प्रभाव डाल पाती हैं। हालांकि यह जानना जरूरी होता है कि यदि आपके अंदर ऐसे लक्षण हैं जिनके कारण से आपको प्री-एक्लेम्पसिया हो सकता है तो उन लक्षणों और कारणों का पता करके समय रहते उन पर नियंत्रण पाना अति आवश्यक होता है। यदि प्री-एक्लेम्पसिया गंभीर अवस्था में पहुंच जाए तो यह मां और बच्चे दोनों के जीवन के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। लगभग प्रत्येक 200 महिलाओं में से एक को (0.5%) गर्भावस्था के दौरान गंभीर प्री-एक्लेमप्सिया होता है। ऐसा भी हो सकता है कि प्री-एक्लेमप्सिया के लक्षण आपको गर्भावस्था के आगे के चरणों में पहुंचने पर दिखाई दें या फिर शिशु के जन्म लेने के बाद आप को प्री-एक्लेमप्सिया के लक्षण दिखाई दें। हमने यहां पर कुछ ऐसे लक्षणों को लिखा है, जो गंभीर प्री-एक्लेमप्सिया में पाए जाते हैं। इनमें से यदि आपको महसूस हो कि कोई भी लक्षण आपको अथवा आपके जानने वाले को महसूस हो रहें हों तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें

  • गंभीर दर्द का होना जो साधारण दर्द निवारक दवाइयों के साथ दूर नहीं जाते हैं
  • दृष्टि से जुड़ी समस्याएं, जैसे आंखों के सामने धुंधलापन या चमकती हुई चीज का नजर आना
  • पसलियों के ठीक नीचे तेज दर्द का होना
  • पेट में जलन का महसूस होना जो कि एंटासिड के प्रयोग के बावजूद ठीक ना होना
  • चेहरे, हाथों या पैरों में तेजी से बढ़ती हुई सूजन बहुत अस्वस्थ महसूस करना

ये लक्षण गंभीर प्री-एक्लेम्पसिया के हैं। प्री-एक्लेम्पसिया में अन्य अंग, जैसे कि यकृत या गुर्दे भी कभी-कभी प्रभावित हो सकते हैं और रक्त के थक्के जमने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। गंभीर प्री-एक्लेम्पसिया बच्चे के जन्म से पहले या उसके ठीक बाद आपको हो सकता है। इस प्रकार के प्री-एक्लेम्पसिया को एक्लेमपिटिक फिट कहा जाता है, जो सामान्य तौर पर बहुत कम देखने को मिलते हैं। रिसर्च के मुताबिक केवल 4000 गर्भावस्था में एक गर्भावस्था ऐसी होती है जो इस प्रकार के एक्लेमपिटिक फिट से पीड़ित हो जाती है।

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प्री-एक्लेम्पसिया आपके होने वाले बच्चे को कैसे प्रभावित कर सकता है

प्री-एक्लेम्पसिया गर्भनाल के विकास को भी प्रभावित कर सकते हैं, जिसके कारण बच्चे के जन्म के पश्चात का विकास भी प्रभावित हो जाता है। जिसके कारण आपके बच्चे की सामान्य बढ़त रुक जाती है। इसके कारण कई बार गर्भावस्था में शिशु के आसपास कम तरल पदार्थ हो सकता है, जो गर्भ में पल रहे शिशु के लिए हानिकारक होता है। यदि गर्भनाल गंभीर रूप से प्रभावित हो चुकी हो तो आपका बच्चा अस्वस्थ रूप में जन्म लेता है। कुछ मामलों में तो गर्भ के अंदर ही शिशु की मृत्यु तक हो जाती है। इसलिए ऐसे समय में यह निगरानी रखना कि गर्भ में पल रहे शिशु को प्री-एक्लम्पसिया से कितना जोखिम है, बहुत मुश्किल कार्य होता है।

प्री-एक्लेम्पसिया का खतरा किसे है और इसे कैसे रोका जा सकता है

प्री-एक्लेम्पसिया गर्भावस्था के दौरान कभी भी हो सकता है। यदि नीचे दिए गए लक्षण आप में दिखाई देते हैं तो-

  • गर्भवती होने से पहले आपका रक्तचाप अधिक था अर्थात आपको गर्भावस्था धारण करने से पहले उच्च रक्तचाप रह चुका है
  • पिछली गर्भावस्था के दौरान आपका रक्तचाप अधिक था
  • आपको कोई अन्य चिकित्सीय समस्या जैसे किडनी की समस्या या मधुमेह अथवा ऐसी कोई बीमारी जो इम्यूनिटी सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) को प्रभावित करती हो जैसे कि ल्यूपस

इनमें से यदि कोई भी लक्षण आप के ऊपर लागू होता है, तो आपको प्री-एक्लेमप्सिया के जोखिम को कम करने के लिए, 12 सप्ताह की गर्भावस्था होने के पश्चात दिन में एक बार कम खुराक वाली एस्पिरिन (75 मिलीग्राम) लेने की सलाह दी जा सकती है। यहां कुछ अन्य लक्षण भी दिए गए हैं जो ऊपर बताए गए लक्षणों से कम महत्व रखते हैं परंतु यदि आपको यह लक्षण अपने अंदर दिखाई दे तो आपको यह समझना चाहिए कि आपके अंदर प्री-एक्लेमप्सिया विकसित हो रहा है, जिसके लिए आपको अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क साधना चाहिए।

  • यह आपकी पहली गर्भावस्था है
  • आपकी आयु 40 वर्ष या उससे अधिक है
  • आपकी पिछली गर्भावस्था को बीते हुए 10 वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है
  • आप बहुत अधिक वजन वाली हैं – 35 या इससे भी अधिक का बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स)
  • गर्भावस्था के दौरान आपकी माँ या बहन को प्री-एक्लेमप्सिया था
  • आपके गर्भ में जुड़वा या तीन शिशु पल रहे हैं
  • आप एक से अधिक बच्चें की मां पहले ही बन चुकी है
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प्री-एक्लेम्पसिया की देखभाल तथा इसका पता कैसे लगाया जा सकता है

अब तक आप यह समझ चुके हैं कि आपको किस प्रकार या पता लगाना है कि आप प्री-एक्लेम्पसिया विकार से पीड़ित हैं अथवा नहीं। यदि आपको पता चलता है कि आप प्री-एक्लेम्पसिया विकार से पीड़ित हैं तो आपको बिना समय नष्ट किए तुरंत चिकित्सीय सलाह लेनी चाहिए। एक बार जब आप चिकित्सीय निगरानी में आ जाते हैं तो वहां आपके रक्तचाप को नियमित रूप से मापा जाता है। जिसके कारण वह आपके बढ़े हुए रक्तचाप को कम करने के लिए उचित इलाज शुरू कर देते हैं। आपको इस बढ़े हुए रक्तचाप को कम करने के लिए कुछ दवाएं दी जाती हैं। अस्पताल में आपके यूरिन का भी टेस्ट करवाया जाता है, जो आपके यूरिन में मौजूद प्रोटीन की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है। इतना ही नहीं हॉस्पिटल के अंदर आपके रक्त का परीक्षण भी किया जाता है। इसके साथ ही आपके डॉक्टर की यह जिम्मेदारी है कि वह आपके होने वाले बच्चे की हृदय गति की निगरानी करें और आपके बच्चे के विकास को मापने के लिए आपका अल्ट्रासाउंड स्कैन करवाएं जिससे कि गर्भ में पल रहे शिशु की पूरी जानकारी मिल सकें। अस्पताल में आपकी विभिन्न जांचों को करने के बाद, आप को बारीकी से मॉनिटर किया जाएगा, ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि आप शारीरिक रूप से एक सुरक्षित गर्भधारण करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं अथवा नहीं। यदि आप की गर्भावस्था में आपके डॉक्टर को किसी प्रकार की कोई कॉम्प्लिकेशन नजर आती है जो आपके अथवा आपके शिशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, तो वह आपको उसी के अनुसार सलाह देंगे।

यदि आप के अंदर प्री-एक्लेम्पसिया से जुड़ी समस्याएं विकसित हो चुकीं हैं तो क्या हो सकता है?

यदि आपके अंदर गंभीर प्री-एक्लेम्पसिया विकसित हो चुका है तो आपकी देखभाल डॉक्टरों की एक विशेषज्ञ टीम के द्वारा की जाएगी। आपके शरीर में इस गंभीर प्री-एक्लेमप्सिया की जटिलताओं को रोकने का एकमात्र तरीका सिर्फ बच्चे का जन्म होता है। प्रत्येक गर्भावस्था अपने आप में बिल्कुल अलग और अनोखी होती है। हर गर्भावस्था का अपना सटीक समय होता है जो उस गर्भावस्था की विशेष स्थिति पर निर्भर करता है। आपके डॉक्टरों की विशेषज्ञ टीम आपसे आपकी गर्भावस्था से जुड़ी विशेष स्थिति पर चर्चा करेगी इस चर्चा में यह विषय महत्वपूर्ण होगा कि आप की डिलीवरी प्राकृतिक होनी चाहिए अथवा सिजेरियन सेक्शन के द्वारा कुछ मामलों में नवजात शिशु का जन्म सिजेरियन सेक्शन के द्वारा करवाने की आवश्यकता पड़ती है अतः आपको मानसिक तौर पर हर स्थिति के लिए तैयार हो जाना चाहिए। डॉक्टर की टीम आपके बढ़े हुए रक्तचाप को कम करने और नियंत्रित करने के लिए दवाएं (या तो गोलियां या ड्रिप के माध्यम से) देंगे। ऐसा भी हो सकता है कि यदि आपके बच्चे के अगले 24 घंटों के भीतर पैदा होने की उम्मीद होगी और आपने एक्लेमपिटिक फिट का अनुभव किया है, तो आपको एक्लेमपिटिक फिट होने से बचाने के लिए दवाएं दी जाएगी।लेबर वार्ड पर भी आप डॉक्टर की कड़ी निगरानी में होंगी। डॉक्टर आपको अस्पताल में भर्ती करने के बाद आपको गहन देखभाल में करेंगे और यदि जरूरत पड़ती है तो कई गंभीर मामलों में, आपको आई.सी.यू. में भर्ती होने की आवश्यकता भी हो सकती है।

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शिशु के जन्म के बाद क्या होगा

  • प्री-एक्लेम्पसिया आमतौर पर शिशु के जन्म के बाद दूर हो जाता है। हालाँकि, यदि आपको गंभीर प्री-एक्लेम्पसिया है, तो पहले कुछ दिनों में आपको परेशानियां हो सकतीं हैं और इसलिए आपको चिकित्सकों की कड़ी निगरानी में रखा जाएगा जहां आप के रक्तचाप को कम करने के लिए आपको उचित दवाएं दी जाएंगी जिन्हें आपको डॉक्टरों के कहने तक लगातार लेना जारी रखने की आवश्यकता हो सकती है।
  • यदि आपका बच्चा समय से पहले पैदा हुआ है या फिर वह अन्य सामान्य बच्चों की तुलना में छोटा है, तो उसे भी निगरानी की आवश्यकता होगी। परंतु ऐसी स्थिति में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि आप अपने नवजात शिशु को स्तनपान नहीं करा सकतीं।
  • ऐसी स्थिति में आपको कई दिनों तक अस्पताल में रहने की आवश्यकता हो सकती है। जब आप घर जाएंगी, तो डॉक्टर आपको यह सलाह देंगे कि आपको कितनी बार अपने रक्तचाप की जांच करवानी है और कितने दिनों तक किस किस समय दवाइयां लेनी है।
  • शिशु के जन्म के बाद आपको कम से कम 6 से 8 हफ्ते तक अपने रक्तचाप और मूत्र जांच के लिए आपको अपने डॉक्टर के साथ फॉलो-अप लेना चाहिए।
  • यदि आपको गंभीर प्री-एक्लेम्पसिया या एक्लम्पसिया था, तो आपको इस स्थिति पर चर्चा करने के लिए अपने प्रसूति-विशेषज्ञ के साथ शिशु के जन्म के बाद अपॉइंटमेंट लेकर उनसे इस विषय में बात करनी चाहिए।
  • यदि आप शिशु के जन्म के 6 सप्ताह बाद भी अपने रक्तचाप का इलाज करने के लिए दवा पर निर्भर हैं या परीक्षण के दौरान आपके मूत्र में अभी भी प्रोटीन की मात्रा मौजूद है तो आपको तुरंत ही विशेषज्ञ से मिलना चाहिए।

क्या भविष्य में आपको अन्य गर्भावस्था के दौरान फिर से प्री-एक्लेमप्सिया हो सकता है

कुल मिलाकर, छह में से एक महिलाओं को जिन्हें प्री-एक्लेम्पसिया गर्भावस्था दौरान हो चुका हो, उन्हें भविष्य में प्री-एक्लेम्पसिया के दोबारा होने की संभावना रहती है। जिन महिलाओं को गंभीर प्री-एक्लेम्पसिया या एक्लेम्पसिया था उन के बारे में नीचे लिखे तथ्य संभावित हैं.

  • दो में से एक महिला को भविष्य में पुनः गर्भावस्था के दौरान प्री- एक्लेमप्सिया हो सकता है, यदि गर्भावस्था के दौरान उन्होंने 28 सप्ताह से पहले उनके बच्चे को जन्म देने की आवश्यकता हुई थी
  • चार में से एक महिला को भविष्य के भविष्य में पुनः गर्भावस्था के दौरान प्री- एक्लेमप्सिया हो सकता है, यदि गर्भावस्था के 34 वें सप्ताह से पहले उन्हें अपने बच्चे को जन्म देने की आवश्यकता हुई थी

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