छठ पूजा के बारे में जानिये ये अद्भुत बातें

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छठ पर्व मूल रूप से सूर्य देवता की आराधना का पर्व है, जिसे हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्त्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ पूजा में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की मिलाजुला कर आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।

छठ पूजा एकमात्र ऐसा विस्तृत रूप में प्रचलित हिन्दु त्योंहार है जिसमें किसी भी पूजारी की आवश्यकता नहीं पड़ती है। छठ पूजा कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को अयोजित की जाती है जो विक्रम संवत में कार्तिक महीने के छठे दिन आती है। इस शुभ घड़ी के मौके पर छठ मैया की पूजा अर्चना की जाती है। छठ मैया को वेदों में ऊषा कहा गया है।

मान्यता है की देव माता अदिति ने की थी सबसे पहले छठ पूजा। एक पौराणिक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। उनसे प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र के रूप में हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहा जाता है कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।

जानते हैं छठ पूजा किस प्रकार की जाती है:

छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का उपवास रखते हैं।

प्रथम दिन (नहाय खाय)

पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। इसके पश्चात छठ के व्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजन करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-चने की दाल और चावल ग्रहण किया जाता है।

दूसरा दिन (लोहंडा और खरना)

दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रती दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को बुलावा दिया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी से चुपड़ी हुई रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की पावनता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य)

तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ (कुछ क्षेत्रों में इसे टिकरी भी कहते हैं) के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।

शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर निकल पड़ते हैं। सभी छठ के व्रती एक पूर्व-नियत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है. छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है; इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले जैसा दृश्य बन जाता है।

चौथा दिन (उषा अर्घ्य)

चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह चढ़ते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सभी व्रत रखने वाले वहीं पुनः इकट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने पूर्व संध्या को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया दोहरे जाती है। सभी व्रती तथा श्रद्धालु घर वापस आते हैं। व्रती घर वापस आकर गाँव के पीपल के पेड़ (जिसको ब्रह्म बाबा कहते हैं) के पास जाकर जाकर पूजा करते हैं। पूजा के पश्चात् व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं जिसे पारण करना कहते हैं।

तो आइये अब हम आपको ले चलते हैं छठ पूजा से जुड़े कुछ अन्य रोचक तथ्यों के पास जिसके बारे में शायद ही आपको पता होगा।

1. यह सबसे प्राचीन त्योंहार है जो अभी भी मनाया जाता है।

छठ पूजा हिन्दु धर्म के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है जो आज भी मनाया जाता है। छठ पूजा का सूर्योदय व सूर्यास्त के समय बहुत महत्व होता है क्योंकि इसे सूर्यदेव का त्योंहार भी कहा जाता है। भक्तों का मानना है कि इस दिन सूर्योदय व सूर्यास्त सबसे महत्वपूर्ण समय होता है क्योंकि इस समय हमारा शरीर बिना किसी नुकसान के सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त कर सकता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि सूर्योदय व सूर्यास्त के समय सौर ऊर्जा में हानिकारक पराबैंगनी किरणों का स्तर बहुत कम होता है। इसलिए यह समय हमारे शरीर के लिए सुरक्षित है।

पर्यावरणविदों का दावा है कि छठ का त्यौहार सबसे पर्यावरण-अनुकूल हिंदू त्यौहार है। यह त्यौहार नेपाली और भारतीय लोगों द्वारा अपने परिवार और सम्बन्धियों के साथ मनाया जाता है।

2. इस पूजा के दौरान आपको एकदम पवित्र रहना होता है।

ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा के उपासक पवित्र स्नान करते हैं, और सात्विकता से रहते हैं और चार दिनों के लिए अपने परिवार से अलग हो जाते हैं। इस अवधि के दौरान उपासक एक शुद्ध आत्मा के रूप में माना जाता है और वह इस अवधि के दौरान जमीन पर ही सोता है। छठ पूजा उत्सव के चार दिनों के दौरान वृत रखने वाले लोगों को ‘वृती’ के नाम से जाना जाता है।

3. एक बार छठ पूजा करने पर एक परिवार को हर साल यह पूजा यह करनी पड़ती है और इसे अपनी आने वाली पीढ़ी को भी यह प्रथा पालन करने के लिए समझाना होता है।

छठ पूजा की सबसे दिलचस्प बात यह है कि अगर कोई व्यक्ति इस पूजा को शुरू करता है तो उसे हर साल इस पूजा में शामिल होने का दृढ़ सकल्प लेना पड़ता है. साथ ही इसे अपनी आने वाली पीढ़ी को भी स्थानान्तरित करना पड़ता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति अत्यधिक बीमार हो जाता है तो वह इस पूजा को छोड सकता है।

Women celebrating chhath puja in bihar

4. छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद या पवित्र भोजन

भक्त, भगवान सूर्य को विशेष प्रसाद प्रदान करते हैं जिसमें मिठाई, खीर, थेकुआ और बांस की टोकरी में रखे फल शामिल होते हैं। प्रसाद को कभी भी नमक, लहसून या प्याज के साथ नहीं पकाया जाता है। छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण प्रसाद खजूर होता है। भगवान सूर्य की अन्तिम आरती के बाद, सभी भक्त एक दूसरे को खजूर का प्रसाद वितरित करते हैं।

5. द्रौपदी का छठ पूजा के साठ सम्बन्ध

छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं; उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट और धन धान्य द्यूत क्रीडा (जुए) में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। व्रत रखने से उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिला।

6. छठ पूजा से होने वाले स्वास्थ्य लाभ

छठ पूजा का अनुष्ठान ऊर्जा स्तर को बढ़ाता है, शरीर और मन को शांति प्रदान करता है, प्रतिरक्षा शक्ति को बढाता है, क्रोध को कम करता है और ईष्र्या के साथ-साथ नकारात्मक भावनाओं को भी दूर करता है। ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा करने से आदमी ज्यादा समय तक जवान रहते हैं।

7. अन्य भारतीय त्यौहारों की तुलना में छठ पूजा में अधिक संख्या में वस्तुओं की ज़रूरत पड़ती है ।

पूजा के लिए जरूरी चीजें- भगवान सूर्य और भगवान गणेश की तस्वीरें, हल्दी पाउडर, रोली (सिन्दूर), अक्षत(कच्चा चावल), लाल रंग का कपड़ा, अगरबत्ती, घी, दीपक, मटका, खजूर, सूपारी, चन्दन, फल, मेवें, और मीठे व्यंजन। छठ पूजा के दौरान सूर्य यंत्र को स्थापित करना तथा सूर्य मंत्र का उच्चारण करना भी बहुत शुभ माना जाता है। इस त्यौहार के दौरान अंगूठी पहनना बहुत भाग्यशाली माना जाता है।

छठ पूजा का पर्व चार दिनों का है। भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता है। पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती है। इसके अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है।

जो लोग व्रत रखते हैं वे दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब सात बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध समर्पित करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं।

8. नई फसल होने का उत्सव

छठ पूजा का त्यौहार नई फसल तैयार होने की खुशी मे भी मनाया जाता है। भक्त लोग नई फसलो और फलों को सूर्य देवता को चढाते हैं।

9. छठ पूजा जैसा त्यौंहार अन्य भी कई देशों में मनाया जाता है।

सूर्य की पूजा करने की यह परंपरा (छठ पूजा) भारत के अलावा अन्य भी कई देशों में आयोजित की जाती है। पृथ्वी पर जीवन का निर्वाह प्राचीन मिस्र और बेबीलोन की सभ्यताओं में भी प्रसिद्ध था।

10. छठ पूजा साल में दो बार आयोजित की जाती है।

बहुत से लोगो को नहीं पता है कि छठ पूजा साल में दो बार आयोजित की जाती है, बहुत कम लोग है जिन्हें इसके बारे में पता है और अब आप भी उन लोगों मे से एक बन गये हैं। ये त्योहार एक बार सर्दियों में एक बार और एक बार गर्मियों में मनाया जाता है। कार्तिक की छठ अक्टूबर या नवम्बर महीने में मनाई जाती है बल्कि चेत्र की छठ होली के कुछ दिन बाद मनाई जाती है।

lord sun is worshipped in chhath puja

छठ पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी, पवित्रता और सामाजिक सौहार्द्र का पक्ष है. इसके मूल में वेद, पुराण जैसे धर्मग्रन्थ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है। नगरों की साफ़-सफाई, व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का मैनेजमेंट, तालाब या नदी किनारे अर्घ्य दान की व्यवस्था के लिए समाज सरकार के सहायता की राह नहीं देखता। इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति हर चरण पर बनी रहती है। यह सामान्य जनता के लिए अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा-भाव और भक्ति-भाव से किये गये सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है.

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