शनिदेव के गुरु पर कैसी बीती साढ़े-साती, आइये जानते हैं.

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SHANI DEV SADE SATI

एक दिन सुबह शनिदेव अपने गुरु जी के पास गए और उन्हें प्रणाम किया। गुरुजी ने उनका हालचाल पूछा और आशीर्वाद दिया। शनिदेव ने कहा गुरु जी मैं आपके चंद्रमा के ऊपर से गुजरने के बारे में सोच रहा हूं इसका अर्थ था कि गुरु जी की शनि की साढ़ेसाती प्रारंभ होने वाली थी। शनि देव के मुंह से यह वचन सुनकर गुरुजी अवाक रह गए। उन्होंने कहा पुत्र मुझ पर दया करो और इस नक्षत्र में चंद्रमा विराजमान है उसने आगमन मत करो। शनिदेव ने कहा लेकिन यह मेरा कर्तव्य है। मैं किसी के लिए भी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हो सकता। आपके लिए भी नहीं। यदि मैं एक बार अपने इस नियम में अपवाद कर दूंगा समाज में निंदा होगी। मैं आप अपनी दृष्टि तो डालूंगा। यह सुनकर गुरुजी ने कहा, “तुम कितने समय के लिए मुझ पर दृष्टि डालोगे?” तो शनि देव ने उत्तर दिया साढ़े सात वर्ष के लिए। 

साढ़े सात वर्ष की जगह पौने चार घंटे की ‘साढ़े-साती’:

गुरुजी भयभीत हो उठे और उन्होंने कहा ऐसा मत करो। शनि देव बोले ठीक है पर कम से कम ढाई साल के लिए तो आप मुझे दृष्टि डालने की अनुमति दीजिए। पर शनि देव के गुरु जी इस बात के लिए भी तैयार नहीं हुए। यहां तक कि वह साढ़े सात महीने या साढ़े सात दिन के लिए भी राजी ना हुए। शनिदेव ने सोचा कि अपने गुरु को अशांत करना ठीक नहीं है। शनि देव ने कहा कि गुरु जी मैं आपसे अत्यंत प्रसन्न हूं कृपया आप मुझसे एक वरदान मांगे। उनके गुरु जी ने कहा कि यदि तुम मुझसे प्रसन्न हो तो मुझ पर अपनी दृष्टि बिल्कुल मत डालो। यह सुनकर शनिदेव ने कहा यदि मैं आपको छोड़ दूंगा तो विश्व में कोई भी मेरा सम्मान नहीं करेगा, कोई भी धर्म का पालन नहीं करेगा, कोई भी मुझसे नहीं डरेगा। लेकिन हां मैंने वादा किया है तो मैं आपको वरदान जरूर दूंगा। मैं आपके चंद्र के नक्षत्र में केवल साढ़े सात पहर के लिए रहूंगा जिसका अर्थ है साढे बाईस घंटे सुनकर गुरु जी ने कहा शनि यदि तुम रहना ही चाहते हो तो मैं तुम्हें सवा प्रहर (जिसका अर्थ है पौने चार घंटे) की अनुमति देता हूं। उन्होंने अपने मन में यह सोचा कि मेरा शिष्य मुझे कैसे पीड़ित कर पाएगा यदि मैं यह समय नहाने और ध्यान करने में गुजार दूंगा। शनि देव को उनके मन की बात पता लग गई और उन्होंने सोचा चूंकि आपने अपने मन में मुझे धोखा देने के बारे में सोचा तो अब मुझे आपको यह दिखाना पड़ेगा कि मैं कितना निष्पक्ष हूँ.

गुरूजी द्वारा गंगा-स्नान करके तरबूज खरीदना:

जब शनिदेव का समय अपने गुरु पर दृष्टि डालने का हुआ उस समय उन्होंने देखा कि उनके गुरु पृथ्वी लोक पर जा चुके थे। उनके गुरु ने सोचा कि मैं गंगा नदी में स्नान करूंगा और जब तक मैं स्नान पूरा करूंगा तब तक शनि द्वारा दृष्टि हटाने का समय आ जाएगा और मेरी प्रताड़ना का समय खत्म हो चुका होगा। गुरुदेव गंगा जी से नहाकर जैसे ही बाहर निकले बस यही उन्हें एक तरबूज का व्यापारी मिला। शनिदेव ही व्यापारी का भेष बनाकर उनके सामने आ पहुंचे थे। जैसे ही गुरुजी पर तरबूज के व्यापारी की छाया पड़ी उनके शरीर और उनके मन में बदलाव होने शुरू हो गए। व्यापारी ने उन्हें दो तरबूज दिखाएं और उन्हें काट कर भी दिखाया कि वह कितने अच्छे थे। उनके अंदर से लाल मीठा रस निकलता देख कर के गुरु जी प्रसन्न हो गए और उन्होंने तरबूज खरीद लिए। गुरु जी ने एक हाथ में कटे हुए तरबूज से भरा हुआ झोला और दूसरे हाथ में लोटा लिया और पास के शहर की तरफ बढ़ गए।

तरबूज का कटे हुए सर में बदल जाना:

उस शहर के राजा और प्रधानमंत्री के लड़के एक दिन पहले जंगल में शिकार के लिए गए थे और जंगल में पूरी तरह खो गए थे। रात तक जब वे वापस नहीं आये तो राजा और प्रधानमंत्री ने उनकी खोजबीन में सैनिक लगा दिए। एक सैनिक ने सामने से आते हुए ब्राह्मण की वेशभूषा में गुरु को देखा। गुरु के झोले से निकलता हुआ लाल रंग का तरल पदार्थ देख कर का वह चिल्लाया, “तुम ब्राह्मण हो या ब्रह्मराक्षस हो जो तुम्हारे झोले से खून निकल रहा है। दिखाओ तुम्हारे झोले में क्या है।” जैसे ही गुरु जी ने झोला खोल कर दिखाया उसके अंदर तरबूज की जगह दो कटे हुए सर थे और तरबूज के रस की जगह खून ही खून बह रहा था।

Shani dev sade sati on his guru

गुरुजी की गिरफ्तारी और मृत्युदंड:

सिपाहियों ने गुरु को गिरफ्तार कर लिया और पकड़कर राजा के दरबार में ले गए। हर तरफ से गुरु के खिलाफ लोग चीख-पुकार कर रहे थे। यह कह रहे थे देखो ब्राह्मण के वेश में कैसा जल्लाद आया है जिसके अंदर दया का अंश मात्र भी नहीं है। रास्ते भर यह गुरु को कोड़े मारते मारते सैनिक राजा के महल तक ले गए और राजा से कहा कि इस निर्दयी इंसान ने आपके तथा प्रधानमंत्री के पुत्र की हत्या की है। गुरु को देखकर राजा ने कहा तुम कितने बुरे हो। तुम्हें मेरे पुत्रों को मारते हुए जरा सा भी तरस नहीं आया या भय नहीं हुआ। राजा ने आदेश दिया के गुरु को अभी इस शहर से बाहर ले जाकर मृत्युदंड दे दिया जाए।

गुरुजी द्वारा शनिदेव की शक्ति का अहसास:

यह सुनकर सैनिक गुरु को लेकर सारे रास्ते कोड़े मारते हुए शहर से दूर ले गए जहां पर जमीन पर एक नुकीला लोहे का कीला गड़ा हुआ था. इसी कीले के ऊपर गुरु को लिटा कर उनके शरीर के आर पार कर उनके प्राणों की आहूति लेने की तैयारी थी। महल के दूसरे भाग में राजकुमार की राजकुमार के मरने की खबर सुनकर उनकी स्त्री ने स्वयं को उसी चिता में बैठकर सती होने का निर्णय किया। पूरे शहर में शोक और पीड़ा की लहर बहुत तेजी से फैल गई। शहर के बाहर एक भीड़ इकट्ठा हो गई यह देखने के लिए कि किसने राजकुमार की हत्या की है। श्री शनिदेव के गुरु जी बुरी तरह से प्रताड़ित हो चुके थे और उन्हें जरा सी भी अनुभूति नहीं थी कि यह सब क्यों हो रहा है। तभी ज़ल्लाद उनके निकट चला आया और उसने कहा अपने द्वारा किए गए बुरे कर्मों का फल भुगतने के लिए तैयार हो जाओ और क्योंकि अब तुम्हारी मृत्यु का समय आ गया है। यह सुनकर गुरु ने उससे कहा कि कुछ पल का इंतजार कर लो। यदि मैं जीवित रह गया तो मैं तुम्हें दस हज़ार चांदी के सिक्के दूंगा। क्या तुम इंतजार नहीं कर सकते? मृत्यु के भय से मेरे गुरु के अंदर यह ज्ञान आ गया था कि शनि देव की दृष्टि डालने का समय खत्म होने वाला है और यदि वे कुछ समय के लिए मृत्यु को टाल सकें तो उनका जीवन बच सकता है।

साढ़े-साती का समय ख़त्म होते ही गुरूजी को सम्मान:

गुरुदेव जानते थे कि शनि देव की दृष्टि हटाते ही उनका बुरा समय खत्म हो जाएगा। जल्लाद कुछ पलों के लिए रुकने को मान गए तथा लगभग इसी समय शनि देव की दृष्टि डालने का समय खत्म हो गया। तभी राजा और प्रधानमंत्री के पुत्र महल में दाखिल हुए और राजा के सामने खड़े हुए उन्हें देखकर राजा की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। उन्होंने एक दूत को भेजा कि उस ब्राह्मण को मृत्यु दंड का भागी मत बनने दो तथा उसे मेरे पास लाओ। दूत भागकर उस जगह पर गया जहां गुरु को लोहे के कीले में गाड़ने की तैयारी थी। वहां से गुरु को सम्मान सहित वे राजा के दरबार में ले आए। राजा के दरबार पहुंचने के बाद गुरु ने राजा को आशीर्वाद दिया और उन्हें सारी कहानी बतायी। गुरु ने कहा कि राजा तुम्हारी कोई गलती नहीं है यह सब तो शनिदेव के द्वारा रचे गए मायाजाल की वजह से हुआ है। उनकी वजह से ही मुझे भी इतनी तकलीफ उठानी पड़ी। 

गुरूजी द्वारा शनिदेव से लिया हुआ वचन:

फिर राजा ने गुरु का झोला मंगवा कर खोल कर देखा तो उसके अंदर तो तरबूज थे। इसके बाद गुरु को अच्छी तरह स्वागत सत्कार कर तथा उनके घावों को भलीभांति ठीक करके उन्हें ऊंचे आसन पर बैठा के राजा ने उनकी आराधना की और उन्हें विविध प्रकार के स्वादिष्ट पकवान खिलाए। उन्हें नए वस्त्र तथा आभूषण दिए तथा उनके झोले में दस हज़ार चांदी के सिक्के भी दिए। जब गुरु जी राजा से विदा लेकर अपने घर की तरफ बढे तो कुछ दूर में ज़ल्लाद मिला। गुरूजी ने उसे वादे के अनुसार चांदी के सिक्के दे दिए। और आगे बढ़े कुछ दूर जाने के बाद शनिदेव अपने गुरु से मिले और उन्हें झुक कर प्रणाम किया और उनसे कहा कि आप कैसे हैं। तो गुरुजी ने कहा कि यह पौने चार घंटे की तुम्हारी दृष्टि ने मेरी हड्डियां तोड़ दी। कौन जानता है कि अगर साढ़े सात साल तक तुम मेरे चंद्र के नक्षत्र में विराजमान होते तो मेरे साथ क्या होता। मैं आज तुमसे ही यह वचन लेना चाहता हूं कि तुम कभी भी किसी को इस हद तक नहीं विचलित करोगे. शनिदेव ने कहा कि गुरु जी हर वह इंसान जिसके अंदर अहंकार नहीं है उसे मुझसे डरने की जरूरत है। लेकिन जिसके अंदर थोड़ा सा भी अहंकार है उसे तो पीड़ा उठानी पड़ेगी ।।

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